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७० | जैन- दर्शन के मूलभूत तत्त्व
करता है - कार्य- परमाणु और कारण - परमाणु । दर्शन - शास्त्र ( Philosophy)
यह नियम है कि कोई भी कार्य कारण के बिना नहीं होता । कारण के होने पर ही कार्य होगा । यदि कार्य हुआ है, तो उससे यह स्पष्ट प्रमाण मिल जाता है कि उसका कारण भी विद्यमान है । इसी अपेक्षा से आचार्य कुन्दकुन्द ने नियमसार गाथा २५ में लिखा है - चार मूल धातुओं का जो कारण है, वह कारण-परमाणु (Cause atom ) है, और स्कन्ध के टूटने पर जो सबसे छोटा हिस्सा सम्भव हो सकता है - स्कन्ध से अलग हो सकता है, वह कार्य - परमाणु (Effect atom ) है । इसका अभिप्राय यह है, कि परमाणुओं के संयोग से पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु-इन चार भूतों के स्कन्ध बनते हैं | इसलिए इन भौतिक पदार्थों के स्कन्ध रूप कार्य का कारण परमाणु है । परमाणुओं का संयोग हुए बिना भौतिक पदार्थ बन ही नहीं सकते । इस अपेक्षा से स्कन्ध रूप कार्य की उत्पत्ति में परमाणु कारण है । इसी प्रकार स्कन्ध के टूटने पर या उसे तोड़ने पर उसका सबसे छोटा भाग परमाणु अलग होकर अपने शुद्ध रूप में आ जाता है । स्कन्ध के रूप में विभाव- पर्याय में से परमाणु का स्वभाव - पर्याय में आ जाना, यह परमाणु का कार्य है और इसमें कारण है स्कन्ध । क्योंकि स्कन्ध के टूटने या तोड़ने पर ही परमाणु उससे अलग होकर अपने शुद्ध रूप में प्रकट होता है । इस अपेक्षा से परमाणु कार्य है और उसका कारण है स्कन्ध |
पुद्गल की पर्याय
जैन दर्शन प्रत्येक द्रव्य के अनन्त गुण मानता है और एक-एक गुण की अनन्त पर्याय मानता है । अतः प्रत्येक द्रव्य की अनन्त - अनन्त पर्यायें होती हैं । मुख्य रूप से पर्याय दो प्रकार की मानी हैं - स्वभाव- पर्याय और विभाव- पर्याय | आचार्य कुन्दकुन्द ने स्वभाव और विभाव की व्याख्या इस प्रकार की है - द्रव्य की पर्याय में होने वाला परिणमन, जो अन्य की अपेक्षा नहीं रखता वह स्वभाव-पर्याय है और जिस परिणमन में अन्य की अपेक्षा रहती है, वह विभाव- पर्याय है । अतः निश्चय दृष्टि से परमाणु ही पुद्गलद्रव्य है और उसमें रहने वाले गुण - एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दोस्पर्श (मृदु और कठोर दोनों में से एक एवं शीत और उष्ण दोनों में से एक) उसके स्वभाव - गुण हैं, और इनका परिणमन ही स्वभाव-पर्याय है । स्कन्ध, परमाणु की विभाव अवस्था है, अतः उसमें पाये जाने वाले पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श - निश्चय-नय की अपेक्षा से पुद्गल के वैभा
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