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पुद्गल का स्वरूप | ६६
एक निउट्रोन होगा । (Neutron or Proton) दोनों में से एक विभक्त होना ही चाहिए। क्योंकि विज्ञान की मान्यता के अनुसार (Atom) के विभक्त होने या टूटने पर ही उसका उपरोक्त रूपों में परिवर्तन होता है । जैसे-प्रोटोन को तोड़ने पर निउट्रोन+पोजिट्रोन और निउट्रोन के तोड़ने से =प्रोटोन+इलेक्ट्रोन बनता है-Proton breaking into Neutron+Positron and the Neutron breaking into Proton + Electron. इस प्रकार विज्ञान की मान्यता के अनुसार Atom के टुकड़े किये जा सकते हैं, उसे तोड़ा जा सकता है। और उसी मूल-तत्व से अन्य सभी पदार्थ बनते हैं, इसलिए मूल तत्व केवल Atom है ।।
विज्ञान जिसे अण (At..m) कहता है, जैन मान्यता के अनुसार वह अण परमाणु नहीं, सूक्ष्म-सूक्ष्म (Fine-fine) स्कन्ध ही हो सकता है । स्कन्ध को तोड़ा जा सकता है। इस बात को जैन-दर्शन भी मानता है कि स्कन्ध टूटता भी है और जुड़ता भी है । उसमें से परमाणु स्वतः टूटकर अलग भी होते हैं और प्रयोग के द्वारा तोड़ने पर भी परमाण स्कन्ध में से अलग हो जाते हैं और उनका दूसरे स्कन्ध के साथ स्वतः संयोग होता है और प्रयोग के द्वारा भी संयोग किया जा सकता है । अभिप्राय यह है कि परमाणु पुद्गल का शुद्ध रूप है और उसी को पुद्गल-द्रव्य वहा है । क्योंकि परमाणुओं के परस्पर संयोग-वियोग से ही विभिन्न प्रकार के स्कन्ध या पदार्थ उत्पन्न और विनाश को भी प्राप्त होते हैं । परन्तु, उनके उत्पन्न एवं विनष्ट होने पर भी परमाणु का कदापि नाश नहीं होता, वह सदा बना रहता है ।
परमाणु के भेद यह मैं पहले ही बता चुका हूँ कि परमाणु के विभाग अथवा टुकड़े नहीं किये जा सकते । और जैन-दर्शन वैशेषिक-दर्शन की तरह पृथ्वी, जल, तेज और वायु के परमाणुओं को पृथक्-पृथक् भी नहीं मानता । क्योंकि परमाण या पुद्गल में पाये जाने वाले गुण-वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शचारों गुण पृथ्वी, जल, तेज एवं वायु में समान रूप से पाये जाते हैं । जल के परमाणु पृथ्वी, तेज एवं वायु में से किसी भी रूप में परिणत हो सकते हैं। इसलिए जैन-दर्शन विभाग एवं गुणों की दृष्टि से परमाणु में भेद नहीं मानता। परन्तु, वह कार्य और कारण की दृष्टि से परमाण के दो भेद
1. Cosmology : Old and New.
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