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६८ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व अर्थ यह है-एक तत्त्व का दूसरे तत्त्व के रूप में परिवर्तित नहीं होना। परन्तु आधुनिक विज्ञान (Ma dern Science) अब मूल-तत्त्व एक एटम (Atom) को ही मानता है। हिन्दी में (Atom) का अर्थ अणु किया जाता है । वैशेषिक-दर्शन धूप में दिखाई देने वाले छोटे-छोटे कणों को अणु कहता है । परन्तु जैन-दर्शन अणु-परमाणु उसे मानता है, जिसके दो विभाग नहीं किये जा सकें । परमाण का आदि (Beginning) मध्य ( Middle) और अन्त (End) वह स्वयं है । अतः विज्ञान द्वारा मान्य (Ato.n) जैनों द्वारा मान्य अणु से भिन्न है । क्योंकि विज्ञान जिसे (Atom) अण कहता है, उसके खण्ड किये जा सकते हैं । आधुनिक विज्ञान अपने द्वारा मान्य मौलिक-तत्त्व अणु के सम्बन्ध में इस प्रकार मानता है१. ऋणात्मक (Negative ) शद्ध मौलिक तत्त्वों का जो उचित भार है, उसे
इलेक्ट्रोन (Electrons) कहते हैं । २. मूल-तत्त्व सम्बन्धी घनात्मक (Positive) रूप से उतने ही परमाणु पुंज
के भार को पोजिट्रोन (Positron) कहते हैं। ३. घनात्मक मूल-तत्त्व के भार से जो १८५० गुणा भारी है. उसे प्रोटोन
कहते हैं। ४. पदार्थ (Matter) के शुद्ध या मूल-तत्त्व-जो किसी तरह के इलेक्ट्रिक
चार्ज से रहित हैं और प्रोटोन से उसका पुंज कुछ कम वजनदार है,
उसे न्यूट्रोन कहते हैं। ५. सामान्य इलेक्ट्रोन से जो पचास गुना अधिक भारी है, उसे हेवी
इलेक्ट्रोन (Heavy-Electron) कहते हैं । ६. जो इलेक्ट्रोन के पुञ्ज का ही एक रूप है, परन्तु (Electr c Charge)
से रहित है, उसे निउट्रिनो (Neutrino) कहते हैं। ७. जिसका प्रोटोन के पुञ्ज के बराबर पुञ्ज है और जो ऋणात्मक मूलतत्व के भार के साथ है, उसे नेगेट्रोन (Negation) कहते हैं।
विश्व की विद्यमानता में विज्ञान निश्चित रूप से इन सात में से प्रथम चार को स्वीकार करता है। अन्त के तीन भेदों पर अभी प्रयोगशाला (Laboratory) में प्रयोग (Experiment) होना शेष है। परन्तु पहले चार तत्वों को प्रयोगों के द्वारा सिद्ध करके विज्ञान ने उन्हें स्वीकार कर लिया है । वे इस प्रकार है-एक प्रोटोन और एक इलेक्ट्रोन के टूटने पर
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