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________________ पुद्गल का स्वरूप | ६७ सकता, परमाणु कहा है । परमाणु पुद्गल का शुद्ध रूप है, वह उसका सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंश है। परमाणु का स्वरूप स्कन्ध का सबसे छोटा हिस्सा, जिसके टुकड़े एवं विभाग नहीं किये जा सकें उस निरवयव अंश को परमाणु कहा है । जैन-दर्शन की मान्यता के अनुसार परमाणु का आदि, अन्त या मध्य भाग नहीं है। परन्तु वह वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श से रहित भी नहीं है । एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श उसमें पाये जाते हैं। क्योंकि ये पुद्गल के गुण हैं, अतः स्कन्ध में ही नहीं, परमाणु में भी इनका सद्भाव रहता है। परमाणु-जो पुद्गल का शुद्ध रूप है, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के बिना नहीं रह सकता और वर्ण आदि गुण भी अपने गुणी परमाणु के बिना नहीं रह सकते । यह स्पष्ट है, कि परमाणु वर्णादि गुणों से युक्त है। हम परमाणु को देख नहीं सकते, परन्तु उसके कार्य को देखते हैं। इससे हमें परमाणु की उपस्थिति का अनुभव होता है। भारतीय-दर्शन में वैशेषिक-दर्शन परमाणुवादी है, जिसकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं। यूनानी-दार्शनिकों ने परमाण पर विचार किया है, और उन्होंने पदार्थ के, पुद्गल के सबसे छोटे हिस्से को अणपरमाण (Atom) कहा है। परमाण सम्पूर्ण लोक में परिव्याप्त है। लोकआकाश का एक भी ऐसा प्रदेश नहीं है, जहाँ पर परमाणु का अस्तित्व न हो । इसके लिए एक उदाहरण दिया जाता है, कि एक डिबिया में काजल ठोस-ठोस कर भर दो और उस पर ढक्कन लगाकर उसे जोर से हिला दो, उस डिबिया में वह सहज रूप से समा जायेगा। इसी प्रकार सम्पूर्ण लोक में परमाणु फैले हुए हैं। जीव. जहाँ स्थित है, गति करता है, वह वहीं से अपने राग-द्वेषात्मक परिणामों के कारण कार्मण-वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर लेता है। यदि परमाण या पूदगल लोक-आकाश में सर्वत्र व्याप्त न हो, किसी स्थान विशेष में ही हो, तो अन्य स्थान पर स्थित आत्मा कार्मण-वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण नहीं कर सकेगा। जिस प्रकार काजल की डिबिया का एक भी ऐसा भाग रिक्त नहीं मिलेगा, जहाँ काजल न लगा हो, उसी प्रकार सम्पूर्ण लोक-आकाश का एक भी प्रदेश पुद्गल-परमाणुओं से रिक्त नहीं मिलेगा। परमाणु और एटम वैज्ञानिक पहले ६२ मौलिक-तत्त्व (Elements) मानते थे। उन्होंने उनके वजन और शक्ति का नाप भी निश्चित किया था। मौलिक-तत्त्व का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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