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६६ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व सके, वे अनन्त परमाणुओं के संयोग से बने हुए स्कन्ध हैं। स्कन्ध भी दो प्रकार के होते हैं-बादर और सूक्ष्म । बादर अर्थात् स्थूल स्कन्ध वे हैं, जो इन्द्रियगोचर हो सकें, इन्द्रियाँ जिनको ग्रहण कर सकें। जो स्कन्ध इन्द्रिय-गम्य नहीं हैं, उन्हें सूक्ष्म स्कन्ध कहा है। वैसे वे मूर्त हैं, साकार हैं, वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श से युक्त हैं. परन्तु इन्द्रियों की पकड़ में नहीं आने के कारण उन्हें सूक्ष्म कहा है। परन्तु दोनों प्रकार के स्कन्ध पौद्गलिक हैं और दोनों प्रकार के स्कन्धों को मिलाकर आचार्यों ने उनके छह भेद भी किए हैं-५. बादर-बादर, २. बादर, ३. सूक्ष्म-बादर, ४. बादर-सूक्ष्म ५. सूक्ष्म और ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म ।
१. बादर-बादर-जो स्थूल स्कन्ध एक बार टूटने के बाद पुनः तद्र प न बन सके, जुड़ न सके, जिस प्रकार लकड़ी, पत्थर, मोती, हीरा आदि ।
२. बादर-जो स्थूल स्कन्ध एक बार टूटकर अलग होने के बाद भी मिलाने पर पुनः उसी रूप में मिल जाये, जैसे प्रवाही पुद्गल-पानी, दूध, घी-तेल आदि ।
३. सूक्ष्म-बादर-जो स्कन्ध देखने में स्थूल परिलक्षित होते हों, परन्तु तोड़े-फोड़े नहीं जा सकें, जैसे-धूप, छाया आदि ।
४. बादर-सूक्ष्म-सूक्ष्म होते हुए एवं आँखों द्वारा दिखाई न देते हुए भी जो इन्द्रियगम्य हो, जैसे-गंध, रस एवं स्पर्श आदि ।
५ सूक्ष्म-जो स्कन्ध रूप होते हुए भी इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण न किये जा सकें, जैसे --कार्मण-वर्गणा के पुद्गल आदि ।
६. सूक्ष्म-सूक्ष्म अति सूक्ष्म, जैसे कर्म-वर्गणा से नीचे के स्कन्धों से लेकर दू यणुक पर्यन्त के पुद्गल स्कन्ध ।
ये स्कन्ध के भेद हैं। बादर, जैन-परम्परा का पारिभाषिक शब्द (Technical word) है। लोक-भाषा में इसे स्थूल कहते हैं। बादर-बादर (स्थूल-स्थूल) से लेकर सूक्ष्म तक के पाँच प्रकार के स्कन्ध हैं, ये अनन्त परमाणुओं के संयोग से बने हुए हैं, परन्तु सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कन्ध उनसे कम परमाणुओं का है और उसका छोटा से छोटा रूप द्व यणुक (दो परमाणुओं) के संयोग से बना हुआ है । उससे छोटा कोई स्कन्ध नहीं होता । पुद्गल के सबसे छोटे भाग को, जो निरंश है अथवा जिसका विभाग नहीं किया जा
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