________________
५४ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
जीव का पुद्गलों के साथ इतना गहरा सम्बन्ध हो गया है, कि सदा पुगल उसके साथ परिलक्षित होता है । व्यक्ति जब जन्म लेता है, तब वह अपने साथ शुभ और अशुभ कर्मों के पुद्गल लेकर आता है, और उस भव के आयु-कर्म के क्षय होने पर वह मृत्यु की गोद में सोता है, तब भी शुभाशुभ कर्मों के पुद्गलों को साथ लेकर जाता है । जन्म और मृत्यु के मध्य में जो जीवन की धारा बहती है, जिसमें हम सांस लेते हैं, खाते-पीते हैं, बोलते हैं, सुनते हैं, स्वाद चखते हैं, गन्ध सूंघते हैं, रूप देखते हैं, पदार्थों का भोगोपभोग करते हैं, यह सब पुद्गल का ही खेल है, जिसे हम जीवन की अन्तिम साँस पर्यन्त खेलते रहते हैं । जन्म से मृत्यु पर्यन्त पुद्गल हमारे साथ संबद्ध है | मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है, उसमें भी पुद्गल साथ रहता है | इस भव का आयुष्य पूरा होने के पहले ही जीव आगामी भव का आयु-कर्म बाँध लेता है । इस घर को छोड़ने के पूर्व ही वह अगले घर की व्यवस्था कर लेता है । इस भव के शरीर को छोड़कर वह आगामी भव में जहाँ का आयु-कर्म बाँध चुका है, वहाँ पहुँचने के लिए मध्य में दो, तीन या चार समय का काल लगता है, उसमें भी जोव के साथ तैजस और कार्मण शरीर रहता ही है । कार्मण शरीर कार्मण (कर्म) वर्गणा के पुद्गलों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर है, और कर्मों के आगमन का एवं विपाक का यही माध्यम है । इस शरीर के माध्यम से ही जीव एक गति से दूसरी गति में और एक योनि से दूसरी योनि जन्म लेता है । इस प्रकार जन्म ( Birth) जोवन (Life) मृत्यु | Death) और पुनर्जन्म (Re-birth) जो यह जन्म-मरण और जीवन का चक्र है, पुद्गल की धुरी पर घूमता है । यह शरीर, इन्द्रियाँ एवं यहाँ तक कि मन -जो हमें प्राप्त है, वह सब पौद्गलिक है, पुद्गल (Matter) से बना हुआ है । हमारे ऊपर-नीचे, दाँये-बाँये, आगे-पीछे, जिधर देखें, उधर पुद्गल बिखरे पड़े हैं । त-दिन हम पुद्गलों में रहते हैं, पुद्गलों को बटोरते हैं, और अन्तिम साँस भी पुदगलों में लेते हैं, फिर अकस्मात् पुद्गल रहित कैसे हो सकते हैं ? आप ही क्यों, तपोनिधि दीर्घ तपस्वी सन्त भी तपस्या के बाद पात्र उठाकर भिक्षा के लिए जाते हैं, और पारणा लेकर आते हैं । जिस पात्र को लेकर सन्त जाते हैं, वह भी पुद्गलों से बना है । उसमें दूध, घी, रोटी, साग-सब्जी आदि जो भी खाद्य-पदार्थ लाते हैं, वे सब पुद्गल ही हैं, और वे जिस धर्म-स्थानक या स्थान में ठहरे हुए हैं और जिस पट्टे पर बैठतेसोते हैं, वह भी पुद्गलों से बना है । जब तक व्यक्ति संसार अवस्था में है
रात
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org