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५० | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व
भाव के कारण उनकी पर्यायें बदलती रहती हैं। काल-द्रव्य उस परिणमन एवं परिवर्तन में सहायक होता है। परन्तु पुद्गल-द्रव्य का कभी भी नाश नहीं होता । क्योंकि प्रत्येक द्रव्य अपने स्वरूप में स्थित रहते हुए अपनी पर्यायों में परिणमन करता है । द्रव्य के उस यथार्थ स्वरूप को समझना ही सम्यक्-ज्ञान है और वही आत्म-विकास का सही मार्ग है।
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