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काल-द्रव्य | ४५
समय विशेष में हुआ था और जो परिणमन होगा, वह भी किसी समय विशेष में ही होगा । समय के बिना परिणमन को वर्तमान, अतोत और अनागत काल से सम्बद्ध कैसे कहा जा सकता है ? कहने का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक आकाश प्रदेश पर द्रव्यों में जो विलक्षण परिणमन हो रहे हैं, उसमें साधारण निमित्त काल है, वह अणु रूप है। उसका सबसे छोटा रूप समय है।
बौद्ध-दर्शन को मान्यता बौद्ध-दर्शन काल को स्वभाव सिद्ध स्वतन्त्र द्रव्य नहीं मानता, उसकी मान्यता के अनुसार काल मात्र व्यवहार के लिए कल्पित है, वह प्रज्ञप्ति मात्र है। परन्तु हम अतीत, वर्तमान और अनागत का जो व्यवहार करते हैं, वह केवल काल की कल्पना मात्र नहीं हो सकती। क्योंकि मुख्य कालद्रव्य के बिना हम उसका व्यवहार भी नहीं कर सकते। जैसे व्यक्ति में शेर का उपचार करते हैं, वह मुख्य शेर के सद्भाव में ही करते हैं। ठीक इसी प्रकार भूत, भविष्य और वर्तमान कालिक व्यवहार से मुख्य काल का सद्भाव स्पष्ट सिद्ध होता है। अन्य द्रव्यों की तरह वह भी एक स्वतन्त्र द्रव्य है तथा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है।
काल के भेद हम काल को सैकण्ड, मिनट, घण्टे, दिन-रात, वर्ष आदि के रूप में जानते हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान के रूप में उसे तीन भागों में भी विभाजित करते हैं।
__ आगमों में अन्य प्रकार से भी काल का विभाजन किया हैनिश्चय-काल और व्यवहार-काल । व्यवहार-काल चन्द्र और सूर्य की गति पर आधारित है, उसी के अनुसार सैकन्ड, मिनट, घण्टे, दिनरात, पक्ष, महिना, वर्ष, युग, शताब्दी, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी आदि के रूप में काल-चक्र का विभाजन करते हैं। वैदिक-परम्परा में सत्युग, द्वापर, त्रेता एवं कलियुग आदि के रूप में व्यवहार-काल का वर्णन मिलता है। इस व्यवहार-काल की अपेक्षा से हो इसे मनुष्य क्षेत्र अथवा ढाई-द्वीप में ही माना है। व्यवहार-काल लोक-व्यापी नहीं है। क्योंकि जितने लोक में सूर्य और चन्द्र गतिशील हैं, उतने ही क्षेत्र में १. अदृशालिनी, १, ३, १६ ।
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