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काल द्रव्य । ४३ होता - वह दोनों आकारों में विद्यमान रहता है। जैसे आयु कर्म का क्षय होने पर मनुष्य पर्याय नष्ट होती है और देव-आयु का उदय होने के कारण देव पर्याय उत्पन्न होती है । परन्तु मनुष्य पर्याय के समय जो जीव द्रव्य था, देव पर्याय के समय भी उसका अस्तित्व बना रहता है । कहने का अभिप्राय यह है कि द्रव्य की पर्यायों के परिवर्तन में काल-द्रव्य सहायक है, परन्तु काल द्रव्य का निमित्त पाकर सभी द्रव्यों की पूर्व पर्याय का नाश होता है और उत्तर-पर्याय उत्पन्न होती है, इसके साथ द्रव्य अपने स्वरूप में सदा विद्यमान रहता है ।
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कर्मयोगी श्री कृष्ण ने भी गीता में यही कहा है कि आत्मा की न तो कभी मृत्यु होती है और न उसका जन्म होता है । मृत्यु और जन्म भव का परिवर्तन मात्र है । जैसे वस्त्रों जीर्ण होने पर व्यक्ति जीर्ण वस्त्र को उतारकर फेंक देता है और नये वस्त्र को धारण कर लेता है । उसी प्रकार आयु-कर्म के समाप्त होते ही आत्मा एक भव के शरीररूप वस्त्र का परित्याग करके, दूसरे भवरूपी नये वस्त्र को धारण करती है । परन्तु भव-नाश के साथ आत्मा नाश - विनाश नहीं होता । उसका अस्तित्व इस भव के पूर्व अनन्त अतीत काल में भी था, इस भव में - वर्तमान में है और इस भव के अनन्तर अन्य भवों में अथवा अनन्त
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अनागत-काल में भी रहेगा ।
चार्वाक दर्शन को छोड़कर शेष सभी भारतीय दर्शन आत्मा के अस्तित्व को तीनों काल में स्वीकार करते हैं । इसका अभिप्राय यह है कि द्रव्य अपने द्रव्यत्व अथवा अपने स्वरूप की अपेक्षा ध्रुव है, नित्य है, परन्तु पर्यायत्व की अपेक्षा प्रतिक्षण परिवर्तित होता रहा है और अनन्त अनागत काल में भी परिवर्तित होता रहेगा ।
काल अपने स्वभाव के अनुरूप किसी द्रव्य के प्रवाह को निरन्तर प्रवहमान करने की योग्यता नहीं रखता । द्रव्य की पर्यायों में परिणमन कराना यह काल का स्वभाव नहीं है । परन्तु जैन दर्शन उसी द्रव्य को काल कहता है, जो द्रव्य अपने स्वभाव के अनुरूप अपनी पर्यायों में निरन्तर परिणत होता रहता है, उसमें सहायक बनना काल का कार्य है । जिस प्रकार मशीन के चक्र के मध्य में लगी हुई कील (Pin ) चक्र ( Wheel) को चलाती नहीं है, फिर भी उसका होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है । यदि चक्र में पिन न हो, सहायक के रूप में उसकी उपस्थिति न हो, तो चक्र घूम ही नहीं सकता । पिन चक्र को चलाती एवं घुमाती नहीं है, पर उसके घूमने में वह सहायक अवश्य है । इसी प्रकार काल-द्रव्य, द्रव्य में
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