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________________ ४२ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व केवलज्ञान में कोई भी पदार्थ एवं द्रव्य - भले ही वह कितना ही सूक्ष्म क्यों न हों, अज्ञात नहीं रहता, अदृश्य नहीं रहता । अतः समय को हम देख नहीं सकते, पर सर्वज्ञ देख सकते हैं । काल का लक्षण और पुद्गल पर का उपकार है ।" आगम में काल का लक्षण 'वर्तना' कहा है । 1 द्रव्यों के परिणमन में, परिवर्तन में काल सहायक आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में कहा है कि जीव वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि में काल द्रव्य में परिवर्तन, परिणमन आदि जो कार्य होते हैं, वे सब काल के निमित्त से होते हैं । गोम्मटसार में भी लिखा है कि द्रव्य काल के कारण ही निरंतर अपने स्वरूप में रहते हुए द्रवित होते हैं, प्रवाहमान रहते हैं । विश्व में स्थित षड्-द्रव्यों में- जो सत् हैं, उनका सतत प्रवाह रूप में रहते हुए भी अपने स्वरूप में स्थित रहना और सभी द्रव्यों में निरन्तर परिवर्तन होनाजो परिलक्षित होता है, वह काल के कारण ही होता है । यह काल-द्रव्य का ही गुण है कि उसके कारण अन्य द्रव्यों में परिवर्तन (Change) होता है | परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि काल ( Time ) कभी भी अन्य द्रव्यों में परिवर्तित नहीं होता और न वह अन्य द्रव्यों को अपने रूप में बदलता है । क्योंकि प्रत्येक द्रव्य अपने आप में स्वतन्त्र है, वह अपने से भिन्न किसी भी द्रव्य में न स्वयं मिलता है और न दूसरे द्रव्य को अपने रूप में परिणत करता है । कोई भी द्रव्य अपने से भिन्न द्रव्य को बदल नहीं सकता, उसमें परिवर्तन नहीं कर सकता । प्रत्येक द्रव्य अपनी ही पर्यायों में परिणमन करता है । 3 १ वत्तना लक्खणो कालो । २ तत्त्वार्थ सूत्र, ५, २२. ३ गोम्मटसार, जीवकाण्ड | द्रवित होना, परिणमन करना यह द्रव्य का स्वभाव है । काल उस परिणमन एवं परिवर्तन में सहायक बनता है, निमित्त रूप से रहता है । काल के कारण पदार्थ नये से पुराना होता है, पुरानेपन के बाद नष्ट हो कर पुनः नया बनता है अर्थात् वस्तु का पूर्व आकार नष्ट होता है और वह नये आकार को ग्रहण करती है । परन्तु इससे द्रव्य का विनाश नहीं Jain Education International जीव, पुद्गल आदि (1 Helper ) द्रव्य है । ( For Private & Personal Use Only - उत्तराध्ययन सूत्र, २८.१०. www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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