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काल द्रव्य | ४१ और २२ दिसम्बर को जब भारत में चौदह घण्टे की रात और दस घण्टे का दिन होता है, तब ओखलो चौबीस ही घण्टे रात्रि के अन्धकार में डूबा रहता है। जब वायुयान एवं पानी के जहाज यूरोप से भारत की ओर आते हैं या भारत से यूरोप की यात्रा पर जाते हैं, तब जिस समय वे भूमध्य रेखा पर पहुँचते हैं, उस समय तुरन्त वे अपनी-अपनी घड़ियों के समय और केलेण्डर की तारीख को बदल लेते हैं। इस प्रकार का भेदप्रधान व्यवहार काल को अखण्ड न मानकर खण्ड रूप मानने पर ही हो पाता है।
काल और समय आगम-साहित्य में काल के लिए दो शब्दों का प्रयोग मिलता हैकाल और समय । काल स्थूल है और समय सूक्ष्म है। काल प्रवाह रूप है, समय प्रवाह से रहित है। काल अनन्त है और समय उसका सबसे छोटा हिस्सा है, जिसके दो भाग नहीं हो सकते। अतीत की अपेक्षा से अनन्त-काल व्यतीत हो चुका और अनागत की दृष्टि से अनन्त-काल धीरेधीरे क्रमशः आने वाला है परन्तु समय में भूत और भविष्य अथवा अतीत
और अनागन के भेद को अवकाश ही नहीं है। समय, वर्तमान काल का बोधक है। वर्तमान-काल मात्र एक समय का होता है। आगमों में समय का माप इस प्रकार बताया है-एक परमाणु को एक आकाश-प्रदेश पर से दूसरे आकाश-प्रदेश पर जाने में जितना समय (Time) लगता है, वह एक समय है। इसे समझाने के लिए आचार्यों ने यह उदाहरण भी दिया है कि हमारी आँखों की पलकें झपकती रहती हैं, वे खुलती और बन्द होती रहती हैं। आँख के झपकने में अथवा खुलने और बन्द होने में जो समय लगता है, उसमें असंख्यात समय बीत जाते हैं। दूसरा उदाहरण यह भी दे सकते हैं-कमल के हजार पत्तों को क्रमशः एक-दूसरे के ऊपर रख कर एक तीक्ष्ण नोंकवाली बड़ी सुई को उन पर रखकर जोर से दबाएं तो पलक झपकते ही या क्षण भर में वह सुई हजारों कमल-पत्रों को छेद कर एक सिरे से दूसरे सिरे पर पहुँच जाती है। परन्तु जैन-दर्शन की मान्यता के अनुसार इस प्रक्रिया में एक-दो या दस-बीस नहीं, असंख्यात समय लगते हैं। समय इतना सूक्ष्म है कि हम उसे देख नहीं सकते । परमाण रूपी है, मूर्त है, वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श से युक्त है, फिर भी हम उसे आँखों से देख नहीं सकते। तब समय, जोकि अरूपी है, अमूर्त है और वर्णादि से रहित है, उसे तो हम तब तक ख नहीं सकते, जब तक सर्वज्ञ नहीं बन जाते ।
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