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३८ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्व
गुण क्यों नहीं रहता ? गुण गुणी में सर्वत्र रहता है, परन्तु अलोक में आकाश द्रव्य जो गुणी है, अपने अवकाश देने के गुण से रहित कैसे रहेगा ? ऐसी बात नहीं है । गुण, गुणी में सदा काल और सर्वत्र रहता है । द्रव्य कभी भी गुण एवं पर्याय से रहित नहीं होता । अलोक में स्थित आकाश भी अपने अवकाश देने के गुण से युक्त है । अवकाश देना उसका गुण या स्वभाव है । यह बात अलग है, कि अलोक में अवकाश या स्थान लेने वाला कोई पदार्थ अथवा द्रव्य उपस्थित न हो। परन्तु वह सदा अवकाश देने की योग्यता एवं क्षमता से युक्त है । अवकाश देना उसका अपना स्वभाव है ।
आकाश उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है । क्योंकि वह एक द्रव्य है । द्रव्य सत् होता है, और सत् वह है, जो उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वभाव वाला है । आकाश द्रव्य रूप से नित्य है, परन्तु पर्याय रूप से सदा परिवर्तित होता रहता है । अमूर्त द्रव्य होने के कारण उसके गुण एवं पर्याय भी अमूर्त हैं, इसलिए उसमें होने वाला परिणमन या परिवर्तन इन आँखों से भले ही दिखाई न दे, पर होता अवश्य है । आकाश सब द्रव्यों को अवकाश देता है, सब द्रव्य आकाश में ही स्थित हैं, फिर भी वह अपने स्वरूप एवं अपने स्वभाव का कभी भी परित्याग नहीं करता । सबके साथ रहते हुए भी उसका अपना अस्तित्व स्वतन्त्र है, और उसका परिणमन अपनी ही पर्यायों में होता है । द्रव्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि वह अपने स्वरूप में ही रहता है, 'पर' रूप में कदापि परिवर्तित नहीं होता, न कभी हुआ है, और न कभी होगा ।
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