________________
आकाश द्रव्य | ३३ .
जैन-दर्शन इस विचार को स्वीकार करता है, कि बोलने के बाद शब्द (भाषावर्गणा के पुदगल) सम्पूर्ण लोक-आकाश में फैल जाते हैं। इस भूमण्डल पर भगवान् महावीर ने सर्वज्ञ अवस्था में तीस वर्ष तक उपदेश किया। तथागत बुद्ध ने भी वर्षों तक अपने विचारों का प्रचार एवं प्रसार किया। महात्मा गांधी को तो हममें से अनेक व्यक्तियों ने सूना ही है। हम सभी बोल रहे हैं । यह ध्यान में रखने की बात है, कि शब्द बोलते ही नष्ट नहीं हो जाते हैं, सर्वत्र फैल जाते हैं। परन्तु जहाँ-जहाँ उनको पकड़ने के साधन होते हैं, वहाँ हम उन्हें पकड़ कर सुन सकते हैं । एक व्यक्ति अमेरिका में रेडियो स्टेशन पर बोलता है, और रेडियो के माध्यम से हम यहाँ बैठे-बैठे उसके शब्द सुन सकते हैं । यदि हम चाहें, तो टेपरेकार्डर में शब्दों को रिकार्ड करके रख सकते हैं, और जब और जितनी बार चाहें सून सकते हैं । शब्द की तरह आकाश मूर्त नहीं है। उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श भी नहीं है । अतः अमूर्त आकाश का गुण अमूर्त ही हो सकता है, मूर्त नहीं । शब्द मूर्त है, अतः वह आकाश का गुण नहीं हो सकता । ध्वनि आकाश में फैलती है, क्योंकि उसे चारों ओर फैलने के लिए अवकाश एवं स्थान आकाश ही दे सकता है । परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है, कि आकाश में फैलने के कारण शब्द को उसका गुण माना जाये । यदि इसी आधार पर उसे आकाश का गण माना जाये, तो सभी द्रव्य आकाश में रहते हैं, आकाश में ही स्थान पाते हैं, फिर सभी द्रव्य अथवा पदार्थ आकाश के गुण होने चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं होता, इसलिए शब्द आकाश का गुण नहीं है। मूर्त और अमूर्त समस्त द्रव्यों को युगपत् अवकाश देना ही आकाश का गुण है।
जब दो पदार्थों में टकराहट होती है, तब ध्वनि निकलती है, और जब वह ध्वनि गुफा, पहाड़ या गहरे कुएँ आदि स्थानों पर दीवारों से टकराती है, तब उसमें से प्रतिध्वनि आती है । यह टकराहट पुद्गलों में ही सम्भव है, क्योंकि वे रूपी हैं, मूर्त हैं । इसलिए वे एक-दूसरे के अवरोधक बनते हैं, और एक-दूसरे से अवरुद्ध भी होते हैं। अन्य जो द्रव्य अरूपी हैं, तथा अमूर्त हैं, वे न किसी को रोकते हैं, और न अन्य से अवरुद्ध होते हैं । अतः ध्वनि और प्रतिध्वनि के सिद्धान्त से यह स्पष्ट होता है, कि जिस रूप में हमारे शब्द ध्वनित होते हैं, ठीक उसी रूप में वे प्रतिध्वनित होते हैं। एक समय की बात है, कि एक ऋषि के आश्रम में एक राजकुमार पढ़ने आया । राजकुमार स्वभाव से विनम्र था । अध्ययन के समय एकाग्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org