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________________ धर्म और अधर्म-द्रव्य । २३ किस आकर्षण के कारण सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। यह आकर्षण-शक्ति (Cemen try force) क्या है ? इस अन्वेषण के परिणामस्वरूप जो समाधान सामने आया है, उसे विज्ञान में Theory of g avitaticn-गुरुत्वआकर्षण का सिद्धान्त कहा गया है। न्यूटन ने Letters to Bentley पुस्तक में इसके सम्बन्ध में लिखा है--"पदार्थों के लिए गुरुत्व-आकर्षण आवश्यक एवं स्वाभाविक या अन्तर्वर्ती शक्ति है । पदार्थ और इस शक्ति का क्या सम्बन्ध है ? इसे स्पष्ट करने के लिए मुझसे मत पूछो । गुरुत्व-आकर्षण का सही कार्य क्या-क्या है, इसको मैं जानता हूँ-ऐसा कहने का मैं साहस नहीं करूंगा । इस पर चिन्तन करने के लिए अभी पर्याप्त समय चाहिए। फिर भी इतना तो कहँगा, कि गुरुत्व-आकर्षण कुछ स्थिर और निश्चल साधनों का माध्यम है, जो निश्चित नियमों से आबद्ध हैं। ये साधन भौतिक हैं, या अभौतिक, यह मैं पाठकों के विचार-विमर्श करने के लिए छोड़ देता हूँ।" न्यूटन यह निश्चय नहीं कर पाया था, कि यह शक्ति भौतिक है या अभौतिक । परन्तु पदार्थों के नीचे गिरने, ठहरने एवं चन्द्र आदि का पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने आदि में गुरुत्व-आकर्षण को वह माध्यम स्वीकार करता है। न्यूटन का कहना है, कि आकर्षण की शक्ति के कारण दो पदार्थों में जो सीधा परिवर्तन होता है, वह उनके पुज या समूह पर निर्भर है। कभी-कभी पदार्थों का आकार वही रहता है, परन्तु दूरी के कारण भी उनमें कुछ अन्तर आता है। उस युग के वैज्ञानिकों का यह मानना था, कि गुरुत्व-आकर्षण पदार्थों को अपनी ओर खींचता है। न्यूटन के पहले ग्रीक विचारक आकर्षण का कारण परमाणु को मानते थे। ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रिट्स यह मानता था, कि अपनी चक्कर वाली तेज गति के कारण परमाणु ही परस्पर एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं-"The atoms attract to one-another on account of their whirling motion." वैज्ञानिकों की यह मान्यता है, कि इस विचार से हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि ब्रह्माण्ड की स्थिरता (Stability of macroscopic) का कारण गुरुत्व-आकर्षण की शक्ति है। इस पर वैज्ञानिकों ने पदार्थों में होने वाली स्थिरता एवं पारस्परिक आकर्षण के लिए थ्योरी आफ ग्रेविटेशन को स्वीकार किया। पहले वे उसे भौतिक मानते थे, परन्तु बाद में उसे non-material (अभौतिक) स्वीकार किया है । न्यूटन उसे Active Force तो मानता था, परन्तु Active होने पर भी वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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