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६ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
यूनान, एशिया और भारत के दार्शनिकों ने विश्व के सम्बन्ध में जो कुछ चिन्तन, मनन एवं अनुभव किया था, उसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-जीव और अजीव, आत्मा और पुद्गल, पुरुष और प्रकृति, चेतन और जड़, ब्रह्म और माया । वर्तमान युग के यूरोपियन दार्शनिकों का विश्व-विषयक चिन्तन भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। अनुसन्धान एवं विश्लेषण के आधार पर सृष्टि एवं पदार्थ के स्वरूप का वैज्ञानिक निष्कर्ष भी विचारणीय है। द्रव्य का निरूपण
__ पाश्चात्य विचारकों के आधुनिक दार्शनिक विवेचन में द्रव्य-निरूपण प्रमुख विषय बन चुका है। इस सम्बन्ध में पाश्चात्य दार्शनिकों एवं विचारकों में डेकार्ट, मेलब्रान्स, स्पीनोजा एवं लाइबनिज प्रसिद्ध हैं। यह आवश्यक नहीं है, कि द्रव्य की व्याख्या एवं परिभाषा उन्होंने जिस प्रकार की अथवा द्रव्य का लक्षण एवं स्वरूप जिस प्रकार बताया, उसी प्रकार हमारे यहाँ हो । वस्तु के स्वरूप का विश्लेषण करने में भिन्नता होने पर भी इतना निश्चित है कि एक ऐसी वस्तु है, जिसका अस्तित्व सभी दार्शनिकों को स्वीकार करना पड़ता है। वस्तु के स्वरूप-वर्णन में पाश्चात्य विचारकों के ही नहीं, सभी भारतीय दार्शनिकों के विचारों में भी एकरूपता नहीं है।
पाश्चात्य-दर्शन में द्रव्य-निरूपण में डेकार्ट का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उसकी शिक्षा का मुख्य विषय गणित और ज्योतिष रहा है। परन्तु जब उसकी अभिरुचि दर्शन-शास्त्र की ओर जागृत हुई, तब उसने गणित एवं दर्शन-शास्त्र में समानता के साथ एक आश्चर्यजनक असमानता को भी देखा। उसने देखा, कि गणित प्रत्यक्ष पर आधारित है, उसमें सन्देह को कम स्थान है, जब कि दर्शन-शास्त्र अदृश्य सत्ता को भी स्वीकार करता है । परन्तु उसने यह दृढ़ निश्चय कर लिया, कि किसी भी धारणा को या अदृश्य शक्ति को स्वीकार करने के पहले वह उसे अपनी बुद्धि की कसौटी पर कसकर देखेगा, कि वह युक्ति-युक्त है या नहीं। प्रत्येक स्थापना को बुद्धि एवं तर्क की कसौटी पर खरा उतरना होगा। डेकार्ट ने अपना चिन्तन व्यापक सन्देह के साथ प्रारम्भ किया। दर्शन-शास्त्र का विषय बाह्य सष्टि, परमात्मा एवं स्वयं का अध्ययन करना था। उसने तीनों की सत्ता में सन्देह किया, परन्तु शीघ्र ही उसे यह अनुभूति हुई, कि इन तीनों की सत्ता
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