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द्रव्य का स्वरूप | ५
सीमित शक्ति को ही देखते हैं, परन्तु उसकी गहराई में नहीं जाते, और उसके अन्तर-तल को नहीं देख पाते ।
२. जो वैज्ञानिक दृष्टि से देखना चाहते हैं, वे व्यक्ति कुछ गहरे चले जाते हैं। ऐसे व्यक्ति केवल वस्तु के बाह्य तल को ही नहीं देखते, परन्तु उसकी गहराई में उतरकर उसके आन्तरिक स्वरूप को एवं वस्तु में निहित शक्ति-गुण को देखते हैं। देखने-परखने का एक विशेष दृष्टिकोण होने के कारण वैज्ञानिक गहराई से देखने पर भी वस्तु के एक अंश को ही देख पाता है, उसके सम्पूर्ण स्वरूप को नहीं।
३. दार्शनिक-दृष्टि से देखनेवाले लोग वस्तु के स्वरूप को गहराई से देखने-परखने का प्रयत्न करते हैं, और उनका लक्ष्य वस्तु के सम्पूर्ण स्वरूप को जानने का रहता है, अतः जिनका चिन्तन, मनन एवं दर्शन वस्तु के सम्पूर्ण स्वरूप को देखता है, वे दार्शनिक हैं, तत्त्ववेत्ता हैं, विचारक हैं।
इस प्रकार इस विश्व में हमको जो कुछ ज्ञात होता है, जो कुछ दिखाई देता है, वह तीन भागों में विभाजित है-१. जड़ = प्रकृति अथवा अजीव पदार्थ । २. चेतन = पुरुष अथवा सजीव पदार्थ और ३. सिद्ध = वह सत्ता जो देखने का नहीं, अनुभूति का विषय है, जिसे परमात्मा या ईश्वर कहते हैं। जिस व्यक्ति की केवल बाह्य-दृष्टि है, जिसका ज्ञान व्यावहारिक है, उसका काम भी देखना है। वह बाह्य पदार्थों को देखता है, परन्तु उनकी गहराई में नहीं जाता। परन्तु वैज्ञानिक गहराई में जाता है, इसलिए वह बाह्य पदार्थों को देखता है, और उन्हें व्यवस्थित भी करता है। क्योंकि वह पदार्थों का परीक्षण करके उनके यथार्थ स्वरूप को देखता है । दर्शन-शास्त्र भी परीक्षण के प्रति उदासीन नहीं रहता, परन्तु उसका काम पदार्थों को देखना एवं विश्लेषण करना ही नहीं, प्रत्युत उनका समाधान भी करना है । दार्शनिक एवं तत्त्ववेत्ता, जो समाधान करता है, उसके पीछे उसका अनुभव है । वह विश्व में अवस्थित अनेक पदार्थों और उनमें स्थित अनेक धर्मों को अनेक दृष्टिकोणों से देखता है । विचारक, दार्शनिक एवं तत्ववेत्ता का दृष्टिकोण एकांगी हो सकता है, परन्तु पूर्णतः असत्य एवं निराधार नहीं होता । क्योंकि वह विश्व में या वस्तु में स्थित सत्य के एक अंश को प्रकट करता है। अतः सभी दृष्टिकोणों का समन्वय करके देखने पर विश्व या वस्तु का सम्पूर्ण रूप हमारे सामने प्रकट होता है ।
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