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द्रव्य गुण पर्याय
द्रव्य जिसमें गुण और पर्याय हों, उसे द्रव्य कहते हैं। गुण और पर्याय का आश्रय द्रव्य है।
गुण-जो द्रव्य के आश्रित रहता है, वह गुण है । गुण सदा द्रव्य के अन्दर रहता है।
पर्याय-द्रव्य और गुण में रहने वाली अवस्थाओं को पर्याय कहतं हैं । पर्याय, गुण और द्रव्य दोनों में रहती हैं।
१. स्कन्ध-अनन्त परमाणु पिण्ड को स्कन्ध कहते हैं। २. देश-स्कन्ध के अर्ध भाग को देश कहते हैं।
३. प्रदेश-स्कन्ध या देश में मिले हुए द्रव्य के अति सूक्ष्म, विभाग को प्रदेश कहते हैं।
४. परमाणु-स्कन्ध या देश से अलग हुए पुद्गल के अति सूक्ष्म निरंश भाग को परमाणु कहते हैं ।
सम्यक्त्व का स्थान
सप्त तत्व, नव पदार्थ, षड् द्रव्य और पञ्च अस्तिकाय-ये जैनदर्शन के मूलभूत तत्व हैं । अन्य सभी तत्वों का समावेश इनमें हो जाता है। जितना भी ज्ञेय, प्रमेय और अभिधेय तत्व है, उससे बाहर नहीं है । इन तत्वों का यथार्थ बोध, पदार्थ श्रद्धान और यथार्थ आचरण ही वस्तुतः मोक्ष मार्ग कहा जाता है। इसमें भी श्रद्धान ही मुख्य है। क्योंकि उसके अभाव में ज्ञान, अज्ञान है, और आचरण, अनाचरण हो जाता है। तप को भी चतुर्थ स्थान मान लें, तो ये चारों मोक्ष के उपायभूत साधन हैं। सम्यक्त्व धारण करने वाले व्यक्ति में इन षट् स्थानों का होना, परम आवश्यक माना गया है१. जीव है।
४. परिणामी नित्य है। २. कर्म-कर्ता है।
५. मोक्ष है। ३. कर्म-फल भोक्ता है। ६. उसका उपाय है।
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