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निगोद
अनन्त जीवों के पिण्डीभूत एक शरीर को निगोद कहते हैं । सिद्धों से बादर निगोद के जीव अनंत गुण अधिक हैं। कन्द, मूल, अदरक एवं गाजर-मूली आदि बादर निगोद हैं । सूची के अग्रभाग में बादर निगोद के अनंत जीव रहते हैं। सुक्ष्म निगोद के जीव उनसे भी अनंत गुण अधिक हैं। बादर निगोद का स्वरूप है, यह ।
लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने सूक्ष्म निगोद के गोले हैं। एकएक गोले में असंख्यात निगोद हैं। एक-एक निगोद में अनन्त जीव हैं। भूत, भविष्यत् और वर्तमान तीनों काल के समय एकत्रित करने पर जो संख्या हो, उससे अनन्त गुण जीव एक-एक निगोद में हैं। यह सूक्ष्म निगोद का स्वरूप है।
निगोद के दो भेद हैं- व्यवहार राशि और अव्यवहार राशि । जो जीव एक बार बादर एकेन्द्रिय या त्रसत्व भाव को प्राप्त करके फिर निगोद में चला जाता है, वह व्यवहार राशि का जीव कहलाता है । जिस जीव ने निगोद से बाहर निकलकर कभी बादर एकेन्द्रियत्व या त्रसत्व को प्राप्त नहीं किया, अनादिकाल से निगोद में ही जन्म और मरण कर रहा है, वह अव्यवहार राशि का जीव होता है। अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आया हआ जीव फिर सूक्ष्म निगोद में जा सकता है। किन्तु वह व्यवहार राशि का ही जीव कहा जाएगा। क्योंकि वह एक बार बाहर निकल चुका है।
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