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सप्तनय
बन्ध और मोक्ष-दोनों जीव की पर्याय हैं । एक शुद्ध पर्याय है, तो दूसरी अशुद्ध । प्रमाण और नय से जीव आदि सप्त तत्व तथा नव पदार्थ का अधिगम होता है । प्रमाण का संक्षेप में कथन किया । यहाँ पर संक्षेप में नय का कथन किया गया है । नय क्या है ? प्रमाण द्वारा परिगृहीत अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म को मुख्य रूप से जानने वाले ज्ञान को नय कहा जाता है । उसके सात भेद हैं
१. नैगम-दो पर्यायों, दो द्रव्यों और द्रव्य तथा पर्याय के प्रधान एवं गौण भाव से विवक्षा करने वाले नय को नैगम नग कहते हैं । अनेक गमों अर्थात् विकल्पों से वस्तु को जानता है। "तत्र संकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगमो नयः ।" निगम का अर्थ है-संकल्प, जो निगम अर्थात् संकल्प को विषय करे, वह नैगम नय कहा जाता है । जैसे-कौन जा रहा है ? मैं जा रहा हूँ । यहाँ पर कोई जा नहीं रहा है, किन्तु जाने का केवल संकल्प ही किया है।
२. संग्रह-विशेष से रहित सत्व, द्रव्यत्व आदि सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाले नय को संग्रह नय कहते हैं। संग्रह नय के दो भेद हैंपर संग्रह और अपर संग्रह । सत्ता मात्र को ग्रहण करने वाला नय पर संग्रह है । क्योंकि यह नय द्रव्य कहने से जीव और अजोव सबको ग्रहण करता है । अवान्तर सामान्य को ग्रहण करने वाला नय अपर संग्रह है। जीव कहने से सब जीवों को ग्रहण करता है, अजीव को नहीं ।
३. व्यवहार नय-लौकिक व्यवहार के अनुसार, विभाग करने वाले नय को व्यवहार नय कहते हैं । जैसे जो सत् हैं, वह द्रव्य है, या पर्याय । जो द्रव्य है, उसके छह भेद हैं । जो पर्याय है, उसके सहभावी और क्रमभावी ये दो भेद हैं । जीव के संसारी और मुक्त दो भेद हैं । भेद-मूलक व्यवहार नय होता है।
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