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नय-स्वरूप
अजीव या जीव, प्रत्येक वस्तु प्रमाण एवं नय का विषय है । प्रमाण का वर्णन किया गया, नय का वर्णन यहाँ प्रस्तुत है। नय के दो भेद हैंद्रव्यार्थिक नय तथा पर्यायार्थिक नय ।
१. द्रव्याथिक नय-जो पर्यायों को गौण करके द्रव्य को ही मुख्यतया ग्रहण करे, उसे द्रव्याथिक नय कहा जाता है।
२. पर्यायाथिक नय-जो द्रव्य को गौण करके पर्यायों को ही मुख्यतया ग्रहण करे, उसे पर्यायार्थिक नय कहा जाता है।
एक अन्य प्रकार से नयों का कथन किया गया है । वह है, अध्यात्म दृष्टि । निश्चय एवं व्यवहार ।
निश्चय नय-वस्तु के शुद्ध एवं मूल स्वरूप को निश्चय कहते हैं। जैसे आत्मा सिद्ध स्वरूप है।।
व्यवहार नय-वस्तु का लोकसम्मत स्वरूप व्यवहार होता है । आत्मा मनुष्य, तिर्यञ्च रूप है ।
निश्चय में ज्ञान की प्रधानता है । व्यवहार में क्रियाओं की प्रधानता रहती है। निश्चय और व्यवहार परस्पर एक-दूसरे के सहायक हैं, एक दूसरे के पूरक हैं।
नयों के अन्य प्रकार से भी भेद-प्रभेद किये गए हैं। जैसे शब्द नय और अर्थ नय, ज्ञान नय और क्रिया नय । जैन दर्शन में नयों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
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