________________
१३८ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
जिन दीन-अनाथ लोगों के पास रहने को घर न हो, सिर छुपाने को स्थान न हो, उन्हें रहने के लिए स्थान देना, घर देना भी पुण्य है । स्थान का दान पुण्य का हेतु है। अतः भारत में लोग धर्मशालाओं का निर्माण कराते हैं, जहाँ लोग विथाम कर सकें।
जिन लोगों के पास रात में विश्राम करने का स्थान न हो, उन्हें शयन कक्ष देना पुण्य है। भारत में पुरातन काल से पान्थशालाओं का निर्माण होता रहा है, जहाँ पर लम्बी यात्रा पर निकला यात्री रात्रि विश्राम करके सुख का अनुभव करता था।
___ शीतकाल में अभाव ग्रस्त मनुष्य वसन के अभाव में पीड़ा पाता था। शीत सहन न कर सकने के कारण से लोगों की मृत्यु तक हो जाती है । अतः वस्त्रदान भी एक पुण्य का हेतु है। भारत में वस्त्रदान की बहुत पुरातन परम्परा रही है।
योग पुण्य का अर्थ है-मन से, वचन से और काय से पुण्य करना । शुभ योग ही पुण्य का कारण है । शुभ योग से मन की प्रवृत्ति, शुभ योग से वचन की प्रवृत्ति और शुभ योग से काय की प्रवृत्ति पुण्य का कारण है ।
मन से पुण्य कैसे होता है ? दूसरों का हित चिन्तन करने से । सब जीवों पर प्रेमभाव रखने से । सबको सुखी करने की भावना से । दुखियों पर दयाभाव करने से । मन्द कषाय से जीव पुण्य का उपार्जन करता है।
वचन से पुण्य कैसे होता है ? मधुर वचन बोलने से, प्रिय वचन बोलने से, मृदु वचन बोलने से । गुणवान् के गुणों की प्रशंसा करने से । अभय वाणी बोलने से पुण्य होता है।
काय से पुण्य कैसे होता है ? काय को साधने से । काय को जप-तप में लगाने से । धर्म के कार्य करने से । वृद्ध, रुग्ण और अपंग की सेवा करने से पुण्य होता है।
___ नमस्कार से पुण्य कैसे होता है ? नमस्कार, विनम्र भाव है, विनय भाव है, विनय समस्त गुणों में श्रेष्ठ होता है। गुरुजनों की भक्ति करने से पुण्य होता है। बड़ों का आदर-सत्कार करने से पुण्य होता है। नमस्कार गुणीजनों के प्रति एक प्रकार की भक्ति है । भक्ति से पुण्य होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org