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१३४ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
अस्तिकाय के नव भेद
१. धर्म के तीन
२. अधर्म के तीन
३. आकाश के तीन
४. अद्धा का एक
५. पुद्गल के चार
स्कन्ध, देश, प्रदेश स्कन्ध, देश, प्रदेश स्कन्ध, देश, प्रदेश
काल एवं समय
स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु
रूपी का अर्थ है - रूपवान् । रूप क्या है ? वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श को रूप कहते हैं । ये चारों सहचर हैं । चारों साथ ही रहते हैं । वर्ण अर्थात् रूप की प्रधानता के कारण रूपी कहा गया है, अन्यथा गन्धवान्, रसवान् और स्पर्शवान् कह सकते हैं । रूपी कौन है ? एकमात्र पुद्गल ही रूपी है, शेष समस्त द्रव्य अरूपी हैं। ये चारों पुद्गल के असाधारण धर्म हैं । एकमात्र पुद्गल में रहते हैं । धर्म, अधर्म, आकाश और काल अरूपी हैं ।
जो जीव और पुद्गल की गति क्रिया में सहायक है, वह धर्म द्रव्य है ।
जो जीव और पुद्गल की स्थिति क्रिया में सहायक है, वह अधर्म
द्रव्य है ।
जो सब द्रव्यों को अपने में अवकाश देता है, वह आकाश द्रव्य है । जो नूतन को पुरातन बनाता है, वह काल द्रव्य है । इसका लक्षण है - वर्तना ।
पुद्गल का लक्षण है- पूरण- गलन स्वभाव वाला द्रव्य । इस में परमाणुओं का अपचय और उपचय निरन्तर होता है ।
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अस्तिकाय दो शब्दों को मिलाकर बना है । अस्ति का अर्थ हैप्रदेश | काय का अर्थ है - समूह । प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते हैं । काल अनस्तिकाय है । क्योंकि वह प्रदेशों का समूह नहीं है । काल द्रव्य एक प्रदेशी कहा गया है ।
धर्म, अधर्म और आकाश के तीन-तीन भेद हैं- स्कन्ध, देश और प्रदेश | धर्म और अधर्म के असंख्यात प्रदेश हैं । आकाश के असंख्यात और अनन्त प्रदेश हैं । लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं, और अलोकाकाश के
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