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ज्ञानोपयोग के भेद
ज्ञानोपयोग के दो भेद हैं- पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान । दोनों को
मिलाकर आठ भेद होते हैं ।
जीव-तत्त्व | १२७
१. मतिज्ञान - जो ज्ञान इन्द्रिय और मन के द्वारा होता है ।
२ श्रुतज्ञान - जो ज्ञान शास्त्र के वाचन से तथा सुनने से जो अर्थ ज्ञान होता है ।
३. अवधिज्ञान - जो ज्ञान इन्द्रिय तथा मन की सहायता के बिना मर्यादापूर्वक रूपी द्रव्य का होता है ।
४. मनःपर्यायज्ञान - जो ज्ञान इन्द्रिय तथा मन की सहायता के बिना मर्यादापूर्वक संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जानता है ।
५. केवलज्ञान - जो ज्ञान संसार के भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल के समस्त पदार्थों को, गुणों को तथा पर्यायों को युगपत् जानता है ।
१. मतिअज्ञान - जो ज्ञान मिथ्यात्व सहचर होता है । मिथ्यात्व दशा में होता है ।
२. श्रुतअज्ञान - जो ज्ञान मिथ्यात्व सहचर होता है । मिथ्यात्व दशा में होता है ।
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३. विभंगज्ञान - जो ज्ञान मिथ्यात्व सहचर होता है । मिथ्यात्व दशा में होता है । विभंग शब्द का अर्थ है - विपरीत | अवधि अज्ञान ।
मनः पर्यायज्ञान और केवलज्ञान तो नियम से सम्यग्दृष्टि को ही होते हैं । अतएव इन दोनों का कभी अज्ञान होता ही नहीं है ।
अज्ञान शब्द में 'अ' निषेध वाचक नहीं है । अतः अज्ञान का अर्थज्ञान का अभाव नहीं होता । यहाँ पर 'अ' विपरीत वाचक है । अतः अज्ञान का अर्थ है - विपरीत ज्ञान ।
परोक्ष और प्रत्यक्ष
पाँच ज्ञान, दो भागों में विभक्त हैं- परोक्षज्ञान और प्रत्यक्षज्ञान । मति और दोनों निश्चयनय से परोक्ष हैं, और व्यवहारनय से प्रत्यक्ष ।
श्रुत
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