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१२८ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
अवधि, मनःपर्याय और केवल-ये तीनों प्रत्यक्ष हैं। प्रत्यक्ष के दो भेद हैं-सकल और विकल । केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है। अवधि तथा मनःपर्याय ज्ञान देश प्रत्यक्ष हैं । सकल और विकल भी कहते हैं ।
दर्शनोपयोग के भेद दर्शन को सामान्य बोध कहा गया है। उसके चार भेद इस प्रकार हैं
१. चक्षुर् दर्शन-नेत्र के द्वारा पदार्थों के जिस सामान्य धर्म का ग्रहण होता है, वह चक्षर् दर्शन है ।
२. अचक्षुर् दर्शन-नेत्र के अतिरिक्त शेष इन्द्रियों- त्वचा, रसना, घ्राण और श्रोत्र-- द्वारा पदाथों का जो सामान्य बोध होता है, वह अचार दर्शन है।
३ इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा को रूपी द्रव्य के सामान्य धर्म का जो बोध होता है, उसको अवधिदर्शन कहते हैं ।
४. संसार के समस्त पदार्थों का युगपत् जो सामान्य बोध होता है, उसको केवलदर्शन कहते हैं।
___ मनःपर्यायदर्शन क्यों नहीं होता है ? समाधान में कहा गया है, कि मनःपर्यायज्ञान, क्षयोपशम के प्रभाव से विशेष धर्मों को ही ग्रहण करके उत्पन्न होता है । वह सामान्य को ग्रहण करता ही नहीं । अतः उसका दर्शन नहीं होता।
मनःपर्याय ज्ञान क्या है ? संज्ञी के मनोगत भावों को जानना। भाव पर्याय रूप होता है । पर्याय सदा विशेष ही होता है, सामान्य नहीं । क्योंकि जो सामान्य होगा, वह द्रव्य होगा। अतः पर्याय को ग्रहण करने वाला ज्ञान, सामान्य को ग्रहण नहीं करता। इसी कारण मनःपर्याय का दर्शन
होता।
जीव के भेद
१. एकेन्द्रिय के चार भेद
१. सूक्ष्म पर्याप्त
२. सूक्ष्म अपर्याप्त
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