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________________ ३ जीव-तत्त्व जीव, आत्मा और प्राणी तीनों पर्यायवाचक शब्द हैं। जीव का क्या अर्थ है ? जो जीवित था, जो जीवित है, जो जीवित रहेगा, वह जीव होता है। आत्मा का क्या अर्थ है ? जो निरन्तर नूतन पर्यायों को धारण करता रहता है, वह आत्मा । प्राणी का क्या अर्थ है ? द्रव्य तथा भाव प्राण जिसके हों, वह प्राणी होता है, प्राणवान् होता है। जिससे जीव की पहचान हो, वह लक्षण कौन-सा है ? जीव का लक्षण है, उपयोग । जीव लक्ष्य है, उपयोग उसका लक्षण है। जीव चेतन है, क्योंकि चेतना उसका निज गुण है । गुण, गुणी से पृथक नहीं होता। वह अनादि-सिद्ध, अनादि-अनन्त है, स्वतन्त्र द्रव्य है । वह अरूपी है, अतः उसका प्रत्यक्ष, इन्द्रियों से नहीं हो सकता । किन्तु स्वसंवेदन प्रत्यक्ष उसका होता है । अनुमान और आगम से भो उसका ज्ञान होता है । उपयोग का क्या अर्थ है ? आत्मा का बोध रूप व्यापार उपयोग कहा जाता है । जीव में बोध की क्रिया होती है, अजीव में नहीं । बोध का कारण है, चेतना शक्ति । चेतना जिसमें हो, उसमें बोध क्रिया होती है, अजीव में नहीं, अचेतन में नहीं । ___ जोव में केवल उपयोग ही नहीं, अन्य भी अनन्त गुण और अनन्त पर्याय होते हैं । लेकिन प्रधानता उपयोग की है। उपयोग के दो भेद होते ( १२५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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