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नव-तत्त्व
जैनदर्शन में तत्त्व वर्गीकरण
जैन दर्शन द्वारा स्वीकृत नव तत्त्व ये हैं
१. जीव
४. पाप
७. संवर
१. जीव
२. अजीव
५. आस्रव
८. निर्जरा
व्यवहारनय से जो शुभ एवं अशुभ कार्यों का कर्ता भी है, और भोक्ता भी है । निश्चयनय से जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप निजगुणों काही कर्ता है, और भोक्ता है । जो दुःख तथा सुख का वेदक है । जो चेतनावन्त है, और जो उपयोगवान् है, उसे जिन भगवान् ने जीव कहा है । जो द्रव्य और भाव प्राणों को धारणकर्ता है, वह जीव है । जो जीवित था, जो जीवित है और जो जीवित रहेगा, वह जिनशासन में जीव कहा जाता है ।
२. अजीव
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जिस में ये लक्षण उपलब्ध नहीं होते, वह अजीव है । जो उपयोगशून्य है, जिसमें चेतना नहीं है, वह अजीव है । जो दुःख तथा सुख का वेदक नहीं है, वह जिनशासन में अजीव कहा गया है। जिसमें न ज्ञान हो, न दर्शन हो और न चारित्र हो - जिन भगवान् ने उसे अजीव कहा है । अजीव में न द्रव्य प्राण हैं एवं न भाव प्राण होते हैं । अजीव प्राणवन्त नहीं है ।
३. पुण्य
६. बन्ध
६ मोक्ष
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