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१०६ | जन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
नूतन दर्शनिक युग
नूतन युग का प्रारम्भ डेकार्ट से प्रारम्भ होता है, और ह्यूम पर समाप्त होता है । यूरोप के प्रसिद्ध दार्शनिक छह हैं-रेने डेकार्ट, बेनेडिक्ट स्पिनोजा, गौटफाइड विल्हेल्म लाइबनित्ज, जान लॉक, जार्ज बर्कले और डेविड ह्यूम । डेकार्ट बहुतत्त्ववादी था। इसकी पदार्थ-मीमांसा प्रसिद्ध है । स्पिनोजा एकतत्त्ववादी था। लाइबनित्ज चिदणुवादी था। ये तीनों दार्शनिक पदार्थवादी हैं । पदार्थ की कल्पना तीनों की भिन्न-भिन्न हैं । लॉक अनुभववादी था । बर्कले प्रत्ययवादी था । ह्यूम संदेहवादी था । अनुभववाद में, प्रत्ययवाद में और संदेहवाद में यूरोप का दर्शन अपने विकास के चरम शिखर जा पहुंचा था।
दर्शन-शास्त्र फिर जर्मनी पहुँच गया। वहाँ के दो दार्शनिक अत्यन्त प्रसिद्ध थे-इमैनुएल कांट और जार्ज विल्हेल्म हेगल । कांट बुद्धिवादी था तथा हेगल निरपेक्ष प्रत्ययवादी था। कांट ने अनुभववाद और बुद्धिवाद का समन्वय किया । हेगल ने दर्शन को विज्ञानवाद और अद्वैतवाद की भूमिका पर खड़ा किया। वस्तुतः कांट और हेगल के काल में, यूरोप का दर्शन-- विकास की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित हो गया था । संक्षेप में यही यूरोप के दर्शन की झलक है। यूनान के तीन दार्शनिक
पाश्चात्य देशों में दर्शन-शास्त्र का जन्म-सबसे पहले यूनान में हुआ था। परन्तु उसका परिपाक हुआ था-सुकरात, अफलातूं और अरस्तू के दर्शन में, लेकिन तीनों की विचार पद्धति भिन्न-भिन्न थी । सुकरात गुरु था। अफलातूं उसका शिष्य था। अरस्तू अफलातू का शिष्य था। अरस्तू ने अपने ग्रन्थों में सुकरात और अफलातू के विचारों की आलोचना की है। महान दार्शनिक सुकरात
सुकरात यूनान देश का एक महान् विचारक तथा दार्शनिक था। उसने अपने विचारों को अन्य दार्शनिकों के समान लिखित रूप नहीं दिया था। वह सदा घूमता रहता था और लोगों से वार्तालाप किया करता था। अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाता था, और दूसरों के विचारों को स्वयं जानता था। अन्य दार्शनिकों के तुल्य न वह दूसरों को प्रभावित करता था और न अपना अनुगामी बनाता था। न वह अपनी सम्प्रदाय
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