________________
जीव-द्रव्य | १०५
अपना अलग दृष्टिकोण है। दर्शन के मुख्य विषय तीन हैं-जीवन, जगत् और परमात्मा । पाश्चात्य दर्शन में तीनों पर विचार किया गया है । ज्ञानमीमांसा, पदार्थ-मीमांसा और कारण-मीमांसा पर बहुविध, व्यापक तथा गम्भीर विचार और अन्वेषण किया गया है । पाश्चात्य दर्शन में अनेक नूतन आयामों का द्वार खुला है।
भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान, नीति विज्ञान, समाज विज्ञान और न-वंश विज्ञान । वस्तुतः ये सब दर्शन के अन्तर्गत थे । परन्तु जैसे-जैसे चिन्तन आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे ही विज्ञान दर्शन से अलग होता गया । इतना ही नहीं, विज्ञान दर्शन पर प्रभावी होता गया। उसका इतना विस्तार हो गया, कि उसको शाखा-प्रशाखाएँ फैलती चली गयीं और आज दर्शन न रहकर एकमात्र विज्ञान ही यूरोप की शान बन गया। उसके गौरव का आधार बन गया। उसकी पहचान बन गया।
काल-विभाग पाश्चात्य दर्शन का विभाजन तीन भागों में किया गया था---यूनानी दर्शन, मध्ययुगीन यूरोपियन दर्शन और आधिकारिक आधुनिक यूरोपियन दर्शन । यूनानी दर्शन का प्रारम्भ-थेलीज, पाइथागोरस और हेराक्लिटस से होता है । उसका अन्त सुकरात, प्लेटो और अरस्तू में होता है ।
अरस्तू में यूनानी दर्शन अपने विकास के चरम शिखर पहुँच जाता है । एक आलोचक का कहना है, कि यूनानी दर्शन, प्लेटो तक शुद्ध दर्शन है, और अरस्तू में विज्ञानवाद प्रारम्भ हो जाता है । अरस्तू में दर्शन विज्ञान का रूप ग्रहण करने लगता है।
मसीहा सम्प्रदाय यूनानी दर्शन के अस्त हो जाने पर, जिसका विकास सुकरात, अफलातूं और अरस्तू ने किया था, अब वह मसीहा सम्प्रदाय के लोगों के हाथ में आ गया। उसमें तीन मुख्य हैं - सन्त आगस्टाइन, सन्त थामस एक्वायना और प्लाटिनस ।
ये तीनों ही दार्शनिक कम और सन्त अधिक थे। ये दार्शनिक नहीं, धार्मिक थे । बुद्धि और अन्वेषण कम था, आस्था और विवेक अधिक । अतः नया चिन्तन समाप्त हो चुका था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org