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१०२ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व
न्याय दर्शन के अनुसार इन्द्रियाँ छह मानी हैं। घ्राण, रसना, नेत्र, श्रोत्र और त्वक् । ये पाँच तो बाह्य इन्द्रियाँ हैं । मन को अन्तरिन्द्रिय माना गया है । इन्द्रिय शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- इन्द्र अर्थात् आत्मा का लिंग । इन्द्रियों की संख्या के विषय में मतभेद रहे हैं। न्याय दर्शन पांच ज्ञानेन्द्रिय और एक मन को मानता है। परन्तु सांख्य दर्शन एकादश इन्द्रियाँ मानता है। पांच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय और एक मन । कर्मेन्द्रियाँ इस प्रकार हैं-~~वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ । वेदान्त भी एकादश इन्द्रियां मानता है। पर मन को अन्तःकरण माना है।
___ जो सूख और दुःख की उपलब्धि का साधन है, वह मन है । वह अणु परिमाण वाला है, हृदय के भीतर रहता है। जिस इन्द्रिय से आत्मा में स्थित सुख-दुःख का ग्रहण होता है, वह मन है। मन अण है, जिस इन्द्रिय के साथ मन का संयोग होता है, उसके द्वारा अपने विषय का प्रत्यक्ष किया जाता है, दूसरी के द्वारा नहीं । एक काल में एक इन्द्रिय के द्वारा ही प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। यदि मन विभु होता, तो एक साथ सभी इन्द्रियों के साथ उसका सम्बन्ध हो जाता, और एक काल में अनेक इन्द्रियों के द्वारा अपने-अपने विषय का प्रत्यक्ष होने लगता । सांख्य में मन को अहंकार का परिणाम माना गया है । मन को विभु भी माना है। वैदिक दर्शन में मन हृदय के भीतर स्थित है । तीव्र गति वाला होने के कारण शरीर के भिन्नभिन्न भागों में जाता रहता है। अन्नंभट्ट-कृत तर्कसंग्रह
तर्कसंग्रह वैशेषिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण लघुग्रन्थ है । इसमें सप्त पदार्थों की बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है। भारत के सभी दर्शनकारों ने स्वाभिमत पदार्थो की भिन्न-भिन्न संख्या मानी है । गौतम ने षोडश पदार्थ माने हैं।
वेदान्त एक ब्रह्म, दो चित् और अचित्, तीन चित्, अचित् और ईश्वर । भक्तिवादी ईश्वर को मानते हैं। सांख्य दर्शन पच्चीस तत्त्व मानता है। मीमांसक आठ पदार्थ मानते हैं। कणाद ने सप्त पदार्थ स्वीकार किए हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव । तर्कसंग्रह में इन्हीं का वर्णन किया गया है। वैशेषिक दर्शन में द्रव्य नव माने हैं। जैन दर्शन षड् द्रव्य स्वीकार करता है ।
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