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जीव-द्रव्य | ६३
जीवों के जन्म तीन प्रकार के होते हैं--संमूर्छम, गर्भ और उपपात । संमूर्छम जन्म उसे कहते हैं, जो अपने शरीर के योग्य पुद्गल परमाणओं के द्वारा माता और पिता के रज तथा वीर्य के बिना ही शरीर की रचना हो जाये । कीट-पतंगों का जन्म इसी प्रकार का होता है। गर्भ जन्म उसे कहते हैं, जो नर-नारी के संयोग से रजोवीर्य के कणों के मिलन से शरीर की रचना हो जाये। मनुष्य, पशु और पक्षी आदि का जन्म इसी प्रकार का होता है । उपपात-जन्म उसे कहते हैं, जो संयोग एवं सहवास के बिना ही देव-शय्या और नारक कुम्भी में शरीर की रचना हो जाती है। देव तथा नारकों का जन्म इसी प्रकार का हुआ करता है।
गर्भ जन्म तीन प्रकार का होता है-जरायुज, अण्डज और पोत । जन्म के समय प्राणी के शरीर से जाल, रुधिर और मांस की जो खोल चिपकी रहती है, उसे जरायु अथवा जेर कहते हैं । उससे जो उत्पन्न होता है, उसको जरायुज कहते हैं। जैसे मनुष्य, गाय और भैंस आदि। जो अण्ड से उत्पन्न होता है, उसे अण्डज प्राणी कहते हैं । जैसे कि काक, कोकिल और कपोत आदि पक्षी । उत्पन्न होते समय जिस जीव पर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता, और जो योनि से बाहर निकलते ही चलने, फिरने और घूमने लगता है, उसे पोत कहते हैं । जैसे कि मृग और सिंह आदि प्राणी होते हैं।
देवों का और नारकों का जन्म उपपात होता है । गर्भ और उपपात जन्म वालों से भिन्न जीवों का जन्म संमूर्छिम होता है । एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों तक का जन्म , नियम से ही संमूर्छिम जन्म होता है । शेष तिर्यञ्चों के गर्भ और संमूर्छिम---दोनों प्रकार से जन्म होते हैं । लब्धि-अपर्याप्तक मनुष्यों का भी जन्म, संमूच्छिम जन्म होता है ।
जीव के तीन वेद
वेद शब्द जैन परम्परा में पारिभाषिक रहा है। वेद शब्द का अर्थ-- ज्ञान भी होता है । ग्रन्थ विशेष भी इसका अर्थ होता है । लेकिन यहाँ वेद का अर्थ होता है--अभिलाषा । पुरुष को स्त्री की जो अभिलाषा होती है, वह पुरुषवेद है । स्त्री को पुरुष की जो अभिलाषा होती है, वह स्त्रीवेद है । नपुंसक को उभय की जो अभिलाषा होती है, वह नपुंसकवेद है । वेद को उपकषाय अथवा नोकषाय कहा गया है । वस्तुतः स्त्री-पुरुष का जो
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