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जीव-द्रव्य | ८७
क्योंकि उसके दो इन्द्रियाँ हैं-स्पर्शन और रसन । पिपोलिका त्रीन्द्रिय है। क्योंकि उसके तीन इन्द्रियाँ हैं-स्पर्शन, रसन और घ्राण । भ्रमर चतुरिन्द्रिय है । क्योंकि उसके चार इन्द्रियाँ हैं-स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्ष । मनुष्य, पशु और पक्षी पञ्चेन्द्रिय हैं क्योंकि उनके पाँच इन्द्रियाँ हैंस्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्ष और श्रोत्र ।
जीवों के दो भेद किये थे-समनस्क और अमनस्क। समनस्क का लक्षण किया है- “संज्ञिनः समनस्काः ।" अर्थात् संज्ञी जीव समनस्क होते हैं । यहाँ पर संज्ञा का अर्थ है-हित और अहित की परीक्षा तथा गुण एवं दोष का विचार, अथवा अतीत की स्मृति, वर्तमान को मति और अनागत की परिकल्पना । हिताहित में प्रवृत्ति-निवृत्ति मन की सहायता से ही होती है, अन्यथा नहीं । मन के बिना विचार नहीं होता है।
द्रव्य-संग्रह द्रव्य संग्रह आचार्य नेमिचन्द्र की सुन्दर कृति है । विषय का निरूपण अत्यन्त संक्षिप्त किया है। इसमें तीन अधिकार हैं-द्रव्य अधिकार, तत्त्व अधिकार और मोक्ष मार्ग अधिकार । जीव के सम्बन्ध में आठ अधिकारों का कथन किया गया है-उपयोग, अमूर्त, कर्ता, भोक्ता, स्वदेह परिमाण, संसारी, सिद्ध और ऊर्ध्वगमन । इसका अभिप्राय है, कि जीव के दो भेद हैं-संसारी और मुक्त । मुक्त शब्द का प्रयोग न करके आचार्य ने सिद्ध शब्द का प्रयोग किया। संसारी जीव के मुख्य दो भेद हैं-त्रस और स्थावर । जीव समास, गुणस्थान और मार्गणास्थान की अपेक्षा भी संसारी जीवों के भेद एवं प्रभेद किये गये हैं। संसारी जीव व्यवहारनय से मार्गणा और गुणस्थानों की अपेक्षा चतुर्दश भेद वाले होते हैं। परन्तु निश्चयनय से समस्त जीव शुद्ध ही हैं, भेद रहित हैं, और एक स्वभाव वाले हैं, एक ही हैं।
इन्द्रिय-लक्षण इन्द्रियों के आधार पर संसारी जीवों के तीन भेद हो सकते हैंएकेन्द्रिय जीव, विकलेन्द्रिय जीव और पंचेन्द्रिय जीव । पाँच इन्द्रियाँ कौनसी हैं ? इसके उत्तर में कहा गया है, कि स्पर्शन, रसन, घ्राण, नेत्र और श्रोत्र । ये पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं। न्याय-वैशेषिक में और मीमांसा-दर्शन में भी ये पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ ही स्वीकृत हैं । लेकिन वेदान्त,सांख्य और योग दर्शन में इन पाँचों के अतिरिक्त पाँच कर्म इन्द्रियाँ भी स्वीकृत हैं-वाक्,
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