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जीव-द्रव्य | ८५ रसना। कीड़ी आदि त्रीन्द्रिय जीवों के तीन इन्द्रियाँ हैं-स्पर्शन, रसना
और ब्राण । भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय जीवों के चार इन्द्रियाँ होती हैंस्पर्श न, रसना, घ्राण और चक्षु । मनुष्य, पशु एवं पक्षी आदि के पांच इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र । पचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं -संज्ञी और असंज्ञी ।
संज्ञा शब्द का अर्थ है--ज्ञान । संज्ञा तीन प्रकार की है-दृष्टिवादिकी, हेतुवादोपदेशिकी और दीर्घकालिकी । दीर्घकालिकी संज्ञा जिन जीवों में होती है, वे संज्ञी होते हैं। भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों का विचार जिससे हो, वह दोर्घकालिकी संज्ञा है। संज्ञी को मन वाला और असंज्ञी को अमन वाला कहते हैं।
संज्ञी जीव के दो भेद हैं-गर्भज एवं औषपातिक । गर्भ से उत्पन्न होने वाले मनुष्य, पशु तथा पक्षी आदि गर्भज कहे जाते हैं। देव और नारक जीव उपपात से उत्पन्न होने से औपपातिक कहे जाते हैं। उपपात शब्द के दो अर्थ हैं -- शय्या और कुम्भी। उपपात-देव और नारक जीवों के उत्पन्न होने के स्थान को कहते हैं। देवों के उत्पन्न होने के लिए उपपात शय्या और नारकों के उत्पन्न होने के लिए कुम्भी होती है। क्योंकि देव एवं नारक जीवों का जन्म गर्भ से नहीं होता । अतएव वे दोनों औपपातिक जीव कहे जाते हैं।
असंज्ञी का अर्थ है-मनरहित । जिसके मनन करने के लिए मन न हो, वे जीव मनरहित होते हैं, असंज्ञी होते हैं। असंज्ञी के दो भेद हैंमनुष्य और तिर्यञ्च । संमूच्छिम मनुष्य और संमूच्छिम तिर्यञ्च असंज्ञी होते हैं । संमूच्छिम शब्द का अर्थ है-अगर्भज, बिना गर्भ के उत्पन्न होने वाले । माता एवं पिता के संयोग के बिना ही उत्पन्न होने वाले जीव संमूच्छिम कहे जाते हैं। इन जीवों का आयुष्य अन्तर्मुहूर्त का होता है, अधिक नहीं। इनकी उत्पत्ति मल, मूत्र एवं कफ आदि अशुचि स्थानों में होती है। सूक्ष्म होने के कारण वे जीव चर्मचक्षुओं से दिखाई नहीं देते हैं।
बालावबोध
नव-तत्त्व प्रकरण ग्रन्थ पर एक टब्बा है, उसका नाम है-बालावबोध । इसकी भाषा मारवाड़ी एवं गुजराती मिश्रित है, और वह भी बहुत प्राचीन है। यह अपभ्रंश काल को रचना है। जो लोग संस्कृत भाषा
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