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________________ ८४ | जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व भिन्न नहीं है । दोनों में कथंचित् अभेद है। अतः कर्म का कर्ता ही उसका फल भोगता है। इस कथन के द्वारा आत्मा के एकान्त नित्यत्व और एकान्त अनित्यत्व का निराकरण किया गया है । आत्मा शब्द के प्रयोग से अनात्मवाद का खण्डन किया गया है। यह प्रमाता का लक्षण सिद्ध हो गया। ___ तर्कवादी आचार्यों ने जीव का लक्षण तर्क-प्रधान शैली से किया है । आचार्य सिद्धसेन ने जो बात कही, वही बात आचार्य वादिदेव सूरि ने कही, और वही बात आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने कही । परन्तु तीनों की शैली अपनी है। तीनों ने तर्क के आधार पर प्रमाता, ज्ञाता, जीव और आत्मा का लक्षण करके स्वमत का मण्डन और परमत का खण्डन किया है। जीव के भेद-प्रभेद जैन दर्शन का जीव विज्ञान विस्तृत एवं व्यापक है । आगम ग्रन्थों में तथा दर्शन ग्रन्थों में जीवों के भेद और प्रभेदों का वर्णन अनेक प्रकारों से किया गया है । भेदों के वर्णन करने की एक पद्धति नहीं रही। अपनीअपनी अभिरुचि के अनुसार वर्णन किया है। किसी ने संक्षेप शैली से तो किसी ने विस्तार पद्धति से जीवों के विभाजन को प्रस्तुत किया है। यहाँ पर संक्षेप में, आगम और दर्शन ग्रन्थों के अनुसार विभिन्न पद्धतियों को प्रस्तुत किया जा रहा है । भेद-प्रभेदों के कथन का मूल आधार नव-तत्त्वप्रकरण, तत्त्वार्थ-सूत्र और द्रव्य-संग्रह है। नव-तत्व प्रकरण इस प्रकरण में जीव के चतुर्दश भेद किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं-एकेन्द्रिय के दो भेद-सूक्ष्म और वादर । विकलेन्द्रिय के तीन भेदद्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय । पंचेन्द्रिय के दो भेद-संज्ञी और असंज्ञी । इन सातों के दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म नामकर्म के उदय से जिन जीवों के शरीर चर्म चक्ष ओं से दृष्टिगोचर नहीं होते, वे सूक्ष्म कहे जाते हैं। बादर नामकर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर अनेकों के मिल जाने से दृष्टिगोचर होते हैं, वे बादर कहे जाते है । सूक्ष्म और बादर जीवों के एक इन्द्रिय होती हैस्पर्शन । शंख आदि द्वीन्द्रिय जीवों के दो इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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