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| तिर्यञ्च नारक, मनुष्य और देव को छोड़कर शेष जितने भी संसारी जीव हैं, वे तिर्यञ्च कहे जाते हैं । नरक-गति की तरह तिर्यञ्च गति भी पाप-मूलक मानी जाती है । तिर्यञ्च जीवों के तीन भेद हैं—जलचर, स्थलचर और खेचर ।
एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव भी तिर्यञ्च योनि में समाविष्ट हो जाते हैं । मनुष्य, देव तथा नारक को छोड़कर शेष समस्त पंचेन्द्रिय त्रस जीव भी तिर्यञ्च गति में हैं । लोकभाषा में, पशु, पक्षी और कीट-पतंगे आदि जीव तिर्यञ्च हैं, तिर्यञ्च अपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार प्रायः चारों गतियों में जा सकते हैं ।
मनुष्य
शास्त्र में मनुष्य-जन्म को सर्व-श्रेष्ठ और सर्व-ज्येष्ठ कहा गया है । इसका मुख्य कारण यह है, कि मनुष्य अपनी संयम साधना से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है, जबकि अन्य गतियों में यह सम्भव नहीं है । गुणस्थान की दृष्टि से भी नारक और देव चतुर्थ गुण-स्थान से आगे नहीं बढ़ सकते । तिर्यञ्च का विकास पाँचवें से आगे नहीं । परन्तु मनुष्य में समस्त गुण-स्थान सम्भावित हैं । अतः मनुष्य जन्म सर्व-श्रेष्ठ एवं सर्व-ज्येष्ठ है।
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