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परन्तु जो आत्माएँ अभी तक कर्म बन्धनों में बद्ध हैं, वे अशुद्ध हैं, कर्म - सहित हैं, मल सहित हैं । शास्त्रकार इस प्रकार की आत्माओं को संसारस्थ कहते हैं । प्रस्तुत बोल में इन्हीं संसारी आत्माओं का वर्णन किया गया है । संसारी आत्माएँ चार ही प्रकार की हो सकती हैंनारक, निर्यंच, मनुष्य और देव ।
नारक
नरक - भूमि के वासी जीव नारक कहे जाते हैं । नरक - भूमि सात हैं, जो इस प्रकार हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा
बालुकाप्रभा,
और
महातमः प्रभा ।
नरक एक ऐसा स्थान है, जहाँ जीव अपने अशुभ कर्मों का फल पाता है । नारक जीवों में अशुद्ध लेश्या और अशुद्ध परिणाम होते हैं, नरक की वेदना तीन प्रकार की होती है— क्षेत्र स्वभाव जन्य शीतादि, परस्परजन्य और असुरजन्य ।
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असंज्ञी जीव मरकर पहली भूमि तक, भुज़परिसर्प दूसरी तक पक्षी तीसरी तक, सिंह चौथी तक, सर्प पाँचवीं तक, नारी छठी तक और मनुष्य एवं मत्स्य सातवीं तक जा सकते हैं ।
नारक जीव मरकर नारक और देव नहीं बन सकते । तिर्यञ्च और मनुष्य ही बन सकते हैं ।
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