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जन्म के आधार पर मनुष्यों के दो भेद हैं-गर्भज और संमूर्छिम । माता और पिता के संयोग से जो जन्म मिलता है, वह गर्भज कहा जाता है । मनुष्य और तिर्यञ्च में ही यह होता है । माता और पिता के संयोग के बिना जो मल-मूत्रादि में मानवाकार प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं, वे संमूर्छिम कहे जाते हैं । मनुष्य की तरह तिर्यञ्च भी संमूर्छिम होते हैं और ये दोनों मनोरहित होने से असंज्ञी ही होते हैं ।
भूमि के आधार पर मनुष्यों के दो भेद किये गये हैं-भोग-भूमिज तथा कर्मभूमिज। भोग-भूमि वह है, जहाँ असि-कर्म, मसि-कर्म और कृषि-कर्म नहीं होते और जहाँ ये होते हैं, वह कर्मभूमि है ।
संस्कृति और सभ्यता के आधार पर मनुष्यों के दो. भेद किये गये हैं जैसे कि आर्य और म्लेच्छ । मनुष्य भी मर कर प्रायः चारों गतियों में जा सकता है ।
| देव
देव शब्द भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में चिरपरिचित हैं । देवगति में सुख माना गया है । वहाँ शुभलेश्या
और शुभ परिणाम माने गये हैं । वहाँ प्रायः सातावेदनीय कर्म का उदय माना गया है ।
देवों के चार भेद हैं-भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क
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