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________________ त्याग रहित है, सम्यग्दृष्टि जिसकी, वह अविरत सम्यग्दृष्टि उसका गुणस्थान, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान । या त्याग-शून्य सम्यग् आत्मबोध की अवस्था है, इसमें, दृषि तो सम्यग् है, पर आचरण नहीं । देशविरत गुणस्थान—जिसकी विरति (त्याग) पूर्ण हो, वह देश विरति, उसका गुणस्थान, देशविरत गुणस्थान इसमें श्रावक को देशरूप में, अंश रूप में, हिंसादि विरति का भाव आ जाता है । प्रमत्तसंयत गुणस्थान—प्रमाद-युक्त साधु के गुणस्था को प्रमत्त संयत गुणस्थान कहते हैं । इसमें सर्व रू से, पूर्ण रूप से चारित्र आ जाता है । वह सर्व विर साधु बन जाता है । अप्रमत्त संयत गुणस्थान—प्रमाद-मुक्त साधु के गुणस्था को अप्रमत्त संयत गुणस्थान कहते हैं । इसमें प्रमाद व अभाव होने से आत्मा और भी अधिक विशुद्ध होत निवृत्ति बादर सम्पराय गुणस्थान—बादर का . स्थूल है, और सम्पराय का अर्थ कषाय है । दश गुणस्थान सूक्ष्म सम्पराय की अपेक्षा उक्त गुणस्थान स्थूल कषाय का अस्तित्व होने के कारण इसे बा. सम्पराय कहते हैं । निवृत्ति का अर्थ भिन्नता है अतः प्रस्तुत गुणस्थान के सम समय-वर्ती समस्त जी ( ३६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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