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________________ , की बद्धस्थिति से लेकर मुक्त स्थिति तक पहुँचने लिए चौदह भूमिकाएँ stages मानी गई हैं, जिन्हें जस्थान; अर्थात् विकास भूमिकाएँ कहते हैं । गुणस्थान । अर्थ है—आत्मा की शुद्ध और अशुद्ध रूप स्थिति शेिष । गुण (आत्मशक्ति) के स्थान (क्रमिक विकास) । गुणस्थान कहा जाता है । मिथ्या दृष्टि गुणस्थान मिथ्या (तत्त्व श्रद्धान के परीत) है, दृष्टि जिसकी, वह मिथ्यादृष्टि, उसका गुणस्थान थ्या दृष्टि गुणस्थान है । यह जीव की निम्नतम दशा सास्वादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान–सम्यक्त्व के आस्वादन त्रि से सहित जो दृष्टि, वह सास्वादन सम्यग्दृष्टि, उसका णस्थान सास्वादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान है । अनन्तानुबन्धी पाय के उदय के कारण सम्यक्त्व से पराङ्मुख मिथ्यात्व की ओर झुके हुए जीव की स्थिति । यह पतन का णस्थान है । इसमें सम्यक्त्व का लेशमात्र अंश रह ता है । सम्यग् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान—यह आत्मा की संदिग्ध, लायमान अवस्था है । इसमें विचार-दृष्टि स्थिर नहीं । पाती है । इसमें स्थित जीव, तत्त्वों पर न एकान्त चि करता है, न एकान्त अरुचि । अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान अविरत, त्याग-रहित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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