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। अध्यवसाय भिन्न; अर्थात् न्यूनाधिक शुद्धि वाले होते
अनिवृत्ति बादर सम्पराय गुणस्थान प्रस्तुत गुणस्थान में भी बादर सम्पराय; अर्थात् स्थूल कषाय का अस्तित्व
ना है । अतः यह भी बादर सम्पराय कहलाता है । पूर्ववर्ती अनिवृत्ति शब्द का अर्थ अभिन्नता है । अतः नवम गुणस्थान में जो जीव सम सम-वर्ती होते हैं, उन सबके अध्यवसाय एक समान; अर्थात्, तुल्य शुद्धि वाले होते हैं ।
सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान—सूक्ष्म रूप में सम्परायकषाय (मात्र लोभ) है जिसमें, वह सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान । इसमें चार कषायों में से केवल सूक्ष्म लोभ रह जाता है ।
उपशान्त मोह गुणस्थान–उपशान्त; अर्थात् अन्तर्मुहुर्त के लिए शान्त हो गया है, मोह कर्म जिसमें, वह उपशान्त मोह, उसका गुणस्थान, उपशान्त मोह गुणस्थान । इसमें मोह (लाभ) का उपशम होता है, क्षय नहीं ।
क्षीण मोह गुणस्थान—क्षीण; अर्थात् समूल नष्ट हो गया है, मोह कर्म, जिसका, वह क्षीण मोह, उसका गुणस्थान, क्षीणमोह गुणस्थान । इसमें मोह सर्वथा नष्ट हो जाता है ।
सयोगी केवली गुणस्थान योग का अर्थ मन, वचन
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