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________________ ब्रह्मचर्य दर्शन को निभाने के लिए, एक अन्य माता के बच्चे की रक्षा करने के लिए, अपना सर्वस्व होम देने को तैयार हो जाती है । ६० "उदयसिंह कहाँ है ?" यह विकट प्रश्न ज्यों ही उसके सामने आया, वह प्रश्न की गम्भीरता को तत्काल समझ गई । यदि वह उदयसिंह की ओर उँगली उठाती है, तो मेवाड़ को अपने भावी अधिनायक से हाथ धोना पड़ता है । और, यदि उदयसिंह के बदले वह अपने स्वयं के बच्चे की ओर इशारा करती है, तो उसके कलेजे के टुकड़े हो जाते हैं । मगर उसने तो मेवाड़ के अधिनायक की रक्षा का भार अपने सिर पर लिया था । यदि वह उदयसिंह की ओर उंगली करे, तो कैसे करे ? क्या वह अपने उत्तरदायित्व से विमुख हो जाए ? नहीं, पन्ना धाय ऐसा नहीं करेगी । वह प्राणोत्सर्ग से भी महान् उत्सर्ग करेगी। पर, अपने कर्त्तव्य और दायित्व से पीछे नहीं हटेगी । उसने पल भर भी विलम्ब किए विना दो टूक फैसला कर दिया । यदि आपके सामने यह प्रश्न उपस्थित होता, तो फैसला करने में कई दिन, हफ्ते और महीने निकल जाते, और शायद वर्ष एवं जीवन भी निकल जाता, फिर भी फैसला न हो पाता । आपके सामने जरा-सा दान देने, या तपस्या करने का प्रश्न आता है, तो उसका फैसला करने के लिए भी महीनों निकल जाते हैं । कभी इससे पूछेंगे और कभी उससे पूछेंगे। यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है, कि मनुष्य को समागत समस्याओं का झट-पट फैसला करना नहीं आता है । हमारे पास जब कोई युवक गृहस्थ आता है, और वह गृहस्थ से साधु बनना चाहता है, तब उसे घूमते-घूमते वर्ष के वर्ष व्यतीत हो जाते हैं । न वह गृहस्थ बन कर ही रह सकता है, न साधु बन कर ही । गृहस्थ जीवन में जो कड़क आनी चाहिए, वह भी उसके जीवन में नहीं आ पाती । कमाने-खाने से भी वह चला जाता है । और दूसरी तरफ साधु जीवन में भी वह प्रवेश नहीं कर पाता है, कि जिस से उसकी ही महक ले सके । साधक - जीवन में कठिनाइयाँ तो हैं, किन्तु उनको कदम जमा कर जा सकता है। दोनों ही ओर काँटों की राह पर चलना है, फूलों को चलना है । मगर वह फैसला ही नहीं कर पाते, कि किस राह पर राह पर न चलें ? यदि वह गृहस्थ बन जाते, तो बहुत अच्छे गृहस्थ बनते, तो भी अच्छे साधु बनते । मगर फैसला ही नहीं हो सका । सका, इधर यौवन की गरमी निकल गई, और जीवन निस्तेज हो गिरते पड़ते मन से साधु के या गृहस्थ के जीवन में आए भी, तो कुछ नहीं बनते, और साधु उधर फैसला न हो गया। उसके बाद कर सके । फैसला करना एक टेढ़ा काम है । तत्काल फैसला न कर सकने के कारण ही Jain Education International तय किया राह पर नहीं चलें, और किस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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