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विवाह और ब्रह्मचर्य
बड़े बड़े साम्राज्य भी खाक में मिल जाते हैं। बड़े-बड़े सेनापति भी चट-पट फैसला न कर सकने के कारण गड़बड़ में पड़ जाते हैं, और सेनाएँ मर मिटती हैं। अतएव समय पर जीवन में दो टूक फैसला करना बड़ा मुश्किल काम है।
पन्ना धाय को कितना समय मिला फैसला करने के लिए? एक घड़ी भी नहीं मिली । मुझे तो देर भी लगी, इस की भूमिका बाँधने में, किन्तु पन्ना को उचित निर्णय करने में कुछ भी देर नहीं लगी। उसने शीघ्र ही धाय के कर्त्तव्य को अच्छी तरह समझ लिया । एक ओर उसका प्राणों से भी प्यारा अपना बच्चा था और दूसरी ओर उदयसिंह था । उसे एक ओर अपने प्राणप्रिय बालक की और दूसरी ओर अपने कर्तव्य को याद आई । परन्तु उसने अपने व्यक्तिगत मोह की अपेक्षा अपने कर्तव्य को महान् समझा और अपने बच्चे की ओर उँगली उठा दी।
पन्ना का फैसला करना था, और उँगली उठाना था, कि बनवीर की चमकती हुई खूनी तलवार बिजली की तरह कौंधती है और उसके बच्चे के दो टुकड़े हो जाते हैं । मगर गज़ब का दिल पाया था उस वीर पन्ना धाय ने । वह रोती नहीं है, वह बनवीर को मालूम नहीं होने देती, कि उसका अपना बच्चा कत्ल हो गया है।
धाय का कर्तव्य कितना ऊँचा है। वहाँ दो टूक फैसला है, कि धाय एक सेविका धाय है और बच्चा उसका अपना बच्चा नहीं है। अन्दर-ही-अन्दर वह इस तथ्य को समझती है, कि मेरा काम उत्तरदायित्व निभाने का है, आखिर बच्चा तो दूसरों का ही है। ___हाँ, तो उस सन्त ने, जीवन के पारखी सन्त ने, जिसके जीवन में एक-रसता आ चुकी थी, बड़ा ही महत्त्वपूर्ण उपदेश दिया, कि समदृष्टि जीव कुटुम्ब का प्रतिपालन करता है और सारा उत्तरदायित्व भी निभाता है, फिर भी अन्दर में उससे अलग रहता है और समझता है, कि मैं और हूँ, और यह और है। उसके अन्तरतर में विवेक की एक ज्योति जलती रहती है । जैसे धाय दूसरे के बच्चे को पालती-पोसती है और उस बच्चे के लिए सब कुछ करती है, पन्ना जैसी धाय तो अपने बच्चे को भी होम देती है, मगर तब भी उसके अन्दर भेद-विज्ञान की यह ज्योति जलती ही रहती है, कि मैं, मैं हूँ और यह, यह है । यही गृहस्थ का आदर्श जीवन है । जीवन की यह राह भी बड़ी कठोर है । समुद्र में रहना है, परन्तु उसमें डूबना नहीं है । कीचड़ में रहकर भी कीचड़ में लथ-पथ नहीं होना है।
___ इन दोनों राहों से अलग एक तीसरी राह और है, पर, वह मोक्ष की राह नहीं है । उस राह के राहगीर'वे हैं, जो अन्दर में वासना का संसार बसाए हुए हैं, किन्तु ऊपर से श्रमण या श्रावक बने हुए हैं, उनका एक कदम भी मोक्ष की ओर नहीं पड़ रहा है। वे साधु हैं, फिर भी संसार की ओर भागे जा रहे हैं, और यदि
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