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________________ विवाह और ब्रह्मचर्य तथा समाज, राष्ट्र और कुटुम्ब परिवार का भार अपने कन्धों पर उठा लेना और उसे पूरा भी करना, फिर भी अन्दर से उसमें आसक्ति या मोह नहीं होना, यह एक बहुत बड़ी बात है । इसीलिए गृहस्थ जीवन के साथ भी भगवान् ने धर्म शब्द को जोड़ा है | सदगृहस्य कुटुम्बका पालन करता है, मगर उसमें मर्यादाहीन आसक्ति नहीं रखता । यही इस गृहस्थ जीवन की महत्ता है । यहाँ कुटुम्ब का अर्थ है - 'वसुषंव कुटुम्बकम्' । यदि समाज और देश को कुटुम्ब से न्यारा कहा जाता, तो उनमें भेदभाव की कल्पना आ जाती । मगर समदृष्टि गृहस्थ के अन्तर में ऐसे भेद-भाव के लिए स्थान कहाँ ? उसके लिए तो जैसा कुटुम्ब परिवार है, वैसा ही देश और समाज है, और जैसा देश और समाज है वैसा ही कुटुम्ब-परिवार है । समदृष्टि की इस विश्वाद्वैत सम्बन्धी विशाल कल्पना को कवि ने एकमात्र 'कुटुम्ब' शब्द का प्रयोग करके बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त कर दिया है। सम्यग्दृष्टि जीव समाज, राष्ट्र और कुटुम्ब के उत्तरदायित्त्व का परिपालन करता है । इस रूप में उसके कार्य करने का ढंग कुछ ऐसा होता है, कि समाज के अन्य साधारण व्यक्ति यह समझते हैं, कि वह संसार के मोह में बुरी तरह से आसक्त है । किन्तु उसके अन्दर की जो भावना है, वह प्रतिक्षण उसे अध्यात्म मार्ग की ओर ही ले जा रही है । ८६ धाय किसी के बच्चे को लेकर पालती है, समय पर दूध पिलाती है और यह भी ध्यान रखती है कि बच्चे को सरदी गरमी न लगने पाए। उसके साथ माता का हृदय जोड़ लेती है, और इसी कारण कभी-कभी ऐसा होता है, कि बच्चा घाय को ही अपनी माँ समझ लेता है, और अपनी स्वयं की माता को भूल जाता है। यदि आप पुराने इतिहास को टटोलेंगे, तो देखेंगे, कि इस धाय नामधारी माताओं ने भी अपने जीवन में बड़े भारी उत्सर्गं किए हैं, इन्किलाब किए हैं। पन्ना धाय का उज्ज्वल उदाहरण आज भी भारत के जन-जन की जीभ पर नाचता है। आप जानते हैं, कि उदय सिंह मेवाड़ के महाराणा थे। वह जब शैशव काल में धाय की निगरानी में पालने में भूल रहे थे, तब उस समय वनवीर नंगी तलवार लेकर उस मासूम बच्चे की हत्या करने आया और पन्ना से पूछने लगा - "उदयसिंह कहाँ है ?" पन्ना के सामने बड़ा ही विकट प्रश्न आ गया और बड़ी ही ज़बरदस्त जवाबदारी आ गई । उसने अपनी जवाबदारी की पूर्ति के लिए राजस्थान के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय जोड़ा है, जो युग-युग तक मानव के मन में कर्तव्य की पवित्र ज्योति जगाता रहेगा । भूले भटके राही को राह दिखाता रहेगा । उस राजपूती युग की माताएँ किस उत्कृष्ट रूप में होंगी, और कितनी उदात्त होंगी, जब कि एक नौकरानी के रूप में काम करने वाली धाय भी अपने उत्तरदायित्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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