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विवाह और ब्रह्मचर्य
यह सब बातें कुछ साधु को ऊँचा बताने के लिए नहीं गढ़ ली गई हैं, और यह भी नहीं है, कि समाज में पूजनीय बनने के लिए बड़ी-बड़ी बातें कह डाली गई हों, और कह दिया हो, कि साधु भगवत्-स्वरूप हो कर विचरण करता है । यह सब बातें भगवान् महावीर के दर्शन में कही हुई हैं । भगवान् महावीर ने जो नियम लिए थे. वही नियम साधु लेते हैं । यदि कुछ अन्तर है, तो केवल यही, कि भगवान् अपने जीवन - लक्ष्य की अन्तिम यात्रा की मंजिल को पार कर गए हैं, और साधु अभी पार कर रहे हैं । यह भी सम्भव है, कि कोई उस मंजिल को पार न भी कर सके । किन्तु व्रत- प्रत्याख्यान करने का जो ढंग है, और संसार से अलग होने का जो ढंग है, आध्यात्मिक क्षेत्र में चलने का जो तरीका है, उसमें किसी प्रकार का अन्तर नहीं है । आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले भगवान् ने जो नियम लिए थे, वही नियम आज भी साधु लेते हैं । इस रूप में जीवन का जो शाश्वत सिद्धान्त है, उसमें काल किसी प्रकार का व्यवधान या विभेद नहीं डाल सका है और परिस्थितियाँ कोई परिवर्तन नहीं ला सकी हैं । अतएव जैसे तब, वैसे ही अब भी, साधु का जीवन उतना ही पवित्र है और उसके आगे बढ़ने की यह राह आज भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है ।
स्मरण रखना चाहिए, कि यह केवल साधु-वेष की महिमा नहीं है । यह महिमा साधु के सैद्धान्तिक जीवन की महिमा है । हमारे यहाँ साधुत्व को महत्त्व दिया गया है, मात्र साधु-वेष को नहीं ।
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इसीलिए कहा गया है, कि साधु के जीवन को अपनाने के लिए अन्दर की तैयारी होनी चाहिए
गुरणाः पूजा-स्थानं गुणिषु न च लिङ्गः न च वयः ।
साधु की पूजा उसके स्थूल शरीर की पूजा नहीं है और उसके बाह्य वेष की भी पूजा नहीं है । साधु की पूजा तो उसमें विद्यमान सद्गुणों की पूजा है । गुणों को विकसित करने के लिए ही साधु को इस कठिन कठोर मार्ग पर चलना पड़ता है । इस में साधक की अवस्था - विशेष बाधक नहीं बनती, और न सहायक ही । कोई छोटी अवस्था का साधु हो ही नहीं सकता, ऐसा भी नहीं है; और न यही है, कि किसी की उम्र पक गई हो, तो वह पूजा के योग्य इसीलिए बन जाए । गुण ही पूजा के स्थान हैं, और यह राह बड़ी कठिन है । इस मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है ।
तीसरा रेल से
एक आदमी पैदल चलता है, दूसरा घोड़ा गाड़ी पर चलता है, चलता है और चौथा हवाई जहाज से चलता है । चलते तो सभी हैं, मगर उनकी चाल क्रमशः तीव्र से तीव्रतर होती है । मगर जिस क्रम से वह तीव्र होती जाती है, उसी क्रम से उस में खतरा भी अधिकाधिक बढ़ता जाता है । गति की तीव्रता में
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