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ज्योतिर्मय जीवन
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पद पर निराशा होती है । उनके जीवन में स्फूर्ति नहीं, उत्साह नहीं, आगे बढ़ने का जोश नहीं और मुसीबतों से टक्कर लेने का साहस नहीं ! यह सब चरित्र बल के ही अभाव का परिणाम है । केवल ब्रह्मचर्य की साधना के द्वारा ही उनमें प्राण-शक्ति का संचार हो सकता है । इस प्रकार ब्रह्मचयं ही साहस, शक्ति, उत्साह और प्राण-शक्ति का होता है ।
व्यावर ८-११-५०
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विचारोत्तेजक प्रेरणा प्रौर पथ-प्रदर्शन के प्रभाव में विषम परिस्थितियों से हार मानकर बहुत से बहुमूल्य जीवन निरर्थक बनकर रह जाते हैं । परिस्थितियां बडी हैं या मनुष्य, दार्शनिकों ने इस प्रश्न को उलझा दिया है, मानव परिस्थितियों का गुलाम बन गया है ! मनुष्य को परिस्थितियों का वास नहीं, स्वामी बनना चाहिए। अपनी लगन, अध्यवसाय, साहस और कुशलता के बल पर जो प्रतिकूल परिस्थितियों को बदल कर आगे बढ़ जाते हैं, वे ही अन्त में सिद्धि एवं प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचते हैं।
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