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ज्योतिर्मय जीवन
पानी के कण-कण में कीचड़ और मैल समाया हुआ है, उसमें आपका स्पष्ट प्रतिबिम्ब कैसे दिखाई दे सकता है ? हाँ, पानी यदि साफ और निर्मल है, किन्तु हवा के आघातों से उठने वाली हिलोरों के कारण चंचल हो रहा है, तो उसमें प्रतिबिम्ब तो दिखाई देगा, किन्तु डावांडोल अवस्था में। पानी साफ-सुथरा भी होना चाहिए,
और स्थिर भी होना चाहिए, तभी मनुष्य उसमें अपना मुख ज्यों-का-त्यों देख सकता है।
इसी प्रकार मनुष्य के जिस मन में विकार भरे हैं, वासनाएं घुसी हैं, और इस कारण जो मन हर तरफ़ से मलिन बना हुआ है, उसमें आप सिद्धान्त और शास्त्र का कोई भी प्रतिबिम्ब नहीं देख सकेंगे। अगर मन में चंचलता है, तब भी ठीक-ठीक नहीं देख सकेंगे । मन स्वच्छ और स्थिर रहना चाहिए।
ब्रह्मचर्य की साधना एक वह साधना है, जो हमारे जीवन के मैल को निकाल कर दूर कर देती है, और हमारे चिन्तन के ढंग को भी साफ़ कर देती है। वह मनुष्य को इतना महान् बना देती है कि कुछ पूछिए मत ।
हमारे यहाँ मल्लवादी एक तेजस्वी आचार्य हो गए हैं । वह बचपन से ही गम्भीर और चिन्तनशील स्वभाव के थे। उनके बचपन की एक घटना है कि एक बार जब वह चिन्तन में लीन थे, तब उज्जैन के तत्कालीन सम्राट की सवारी उधर होकर निकली । मन्त्री उन के साथ था और वह जैन था। राजा ने देख कर पूछा-"यह लड़का क्या कर रहा है ? यह तो तुम्हारा उपाश्रय जान पड़ता है । क्या यह भी साधु बनेगा ?"
मन्त्री ने कहा-“राजन्, बनेंगे नहीं, यह तो गुरू ही हैं।" राजा को विस्मय हुआ । इतनी छोटी-सी उम्र में गुरू !
राजा ने गुरुत्व की परीक्षा के लिए उस बाल-गुरू से संस्कृत भाषा में पूछा"किं मिष्टम् ?' 'क्या मीठा है ?'
राजा का यह प्रश्न सुना, मगर बदले में बालमुनि ने राजा की ओर मुंह फेर कर भी नहीं देखा । अपने अध्ययन में लीन रहते हुए ही उसने उत्तर दिया-'दुग्धम्' 'दूध मीठा है।'
___ कहते हैं कि छह महीने के बाद फिर राजा की सवारी निकली और राजा ने देखा कि वह गुरू अब भी ज्यों-का-त्यों अध्ययन में लीन है। राजा को ध्यान आया, छह महीने पहले मैंने एक प्रश्न किया था। अब की बार राजा ने उसी पुराने प्रश्न से सम्बन्धित एक नया प्रश्न पूछा-'केन सह' ? 'किसके साथ ?'
प्रश्न सुन कर उस कुमार साधक ने; तरुणाई की ओर बढ़ते हुए उस बाल
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