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________________ ज्योतिर्मय जीवन प्रवृत्ति है, वही जीवन में बहुमूल्य साधना है। सुकुमारी सीता के इसी चरित्र-बल के समक्ष रावण भी परास्त हो गया। राजर्षि नमि ने एक बार अपनी सेनाओं को आदेश देते हुए एक महत्त्वपूर्ण बात कहीं थी । उन्होंने कहा-“जब तुम दूसरे देश में प्रवेश करोगे, और विजेता बन कर जाओगे, तब वहाँ का वैभव और भोग-विलास की सामग्री तुम्हारे सामने होगी। सैनिक के हाथ में शक्ति रहती है और वह उसे अन्धा कर देती है । किन्तु वहां का धनवैभव तुम्हारे लिए नहीं होना चाहिए। तुम्हारे अन्दर इतना प्रबल चरित्र-बल होना चाहिए कि तुम वहाँ की एक भी वस्तु न छू सको । उस देश की सुन्दरी स्त्रियाँ तुम्हारी माताएं और बहिनें होनी चाहिएं।" । सैनिक युद्ध में लड़ता है, संहार करता है, प्रलय मचा देता है, और खून की मदियां बहा देता है। किन्तु जो सेनाएं नैतिक बल .पर कायम रहती हैं, वे जहां भी जाती हैं, न धन को लूटने का प्रयत्न करती हैं, और न माता-बहिनों की इज्जत छीनने की ही कोशिश करती हैं। वे जहाँ भी जाती हैं, जनता के मानस को जीत लेती हैं, उनके हृदय-पटल पर अपने उच्च चरित्र की छाप लगा देती हैं। मनुष्य के चरित्र में अमित शक्ति होती है। . सैनिकों के जीवन जैसा ही हर गृहस्थ का जीवन होना चाहिए । गृहस्थ में यदि मैतिक बल है, तो जब वह घर में रहता है, तब भी इज्जत और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और जब नाते-रिश्तेदारों में जाता है, तब भी आदर पाता है। जिसमें नैतिक बल है, लाखों का ढेर भी उसके लिए राख का ढेर है। उसके लिए अप्सरां जैसी सुन्दरी से सुन्दरी रमणियाँ भी माताएँ और बहिनें हैं । दूकानदार में भी चरित्र-बल होना चाहिए । दूकान पर माताएँ और बहिनें आती हैं, और दिन भर आने-जाने का ठाठ लगा रहता है । किन्तु दूकानदार का शीलसौजन्य अगर अमृतमय है, उसकी दृष्टि में सात्विकता है, तो यह इतनी बड़ी प्रामाणिकता है, कि संसार में उसके लिए किसी चीज की कमी नहीं होगी। अभिप्राय यह है, कि कोई कहीं भी रहे और आजीविका के लिए कुछ भी करे, मगर उसमें चरित्र-बल हो, तो उसका जीवन स्पृहणीय बन जाएगा । सदाचार का प्रभाव अमिट होता है। __चौरानवे वर्ष की उम्र में एक बड़े साहित्यकार अभी इस दुनियाँ से गए हैं । उनका नाम था-जार्ज बर्नार्ड शॉ। वह अपने युग के, दुनिया के सबसे बड़े विचारक माने गए हैं । वे यूरोप में, जहाँ चारों ओर भोग और वासना का वातावरण है, रहे, किन्तु उन्होंने अपने जीवन में कभी वासना के गलत रूप को स्थान नहीं दिया। उन्होंने कभी शराब नहीं छई । उन्होंने अपना ऐसा ऊँचा चरित्र-बल कायम किया, कि संसार की स्त्रियों के लिए उनके जीवन में सदा सर्वदा पवित्र-भाव का झरना ही बहता रहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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