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ज्योतिर्यय जीवन
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लेना और उनसे पेट भर लेना बुद्धिमत्ता नहीं है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन पाकर विषय-वासना में लिप्त रहना भी बुद्धिमत्ता नहीं है ।।
मनुष्य का यह महान् जीवन ब्रह्मचर्य की आधार-शिला पर ही टिका हुआ है । ब्रह्मचर्य ही शरीर को सशक्त और जीवन को शक्ति-सम्पन्न बनाता है । सबल जीवन वाला मनुष्य गृहस्थ-जीवन में भी मजबूत बन कर अपनी यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकता है, और यदि वह साधु-जीवन प्राप्त करेगा तो उसको भी श्रेष्ठ बनाएगा । उसे जहाँ भी खड़ा कर दोगे, उसमें से शक्ति का प्रचण्ड झरना बहेगा और उसे जो भी कर्तव्य सौंप दोगे, वह अपने प्राणों को छोड़ने के लिए भले तैयार रहे, मगर निर्दिष्ट कर्त्तव्य को नहीं छोड़ेगा । अपने कर्त्तव्य से कभी-भी विमुख नहीं होगा।
विचारों में बल ब्रह्मचर्य की साधना से ही आता है । एक मन ऐसा होता है कि जिसमें गंदे विचार उठा करते हैं । जो मन रात-दिन वासना की गन्दगी में भटका करता है, तो उसमें से सुगन्ध आएगी या दुर्गन्ध आएगी? गन्दा मन जहाँ भी रहेगा, गन्दगी ही पैदा करेगा। परिवार में भी गन्दगी पैदा करेगा और समाज में भी गन्दगी पैदा करेगा । निर्बल तथा दूषित मन की दुर्गन्ध बाहर जरूर आएगी। जो स्वयं दूषित है, वह दूसरों को भी दूषित बनाता है।
शुद्ध-साधना का सिंह-द्वार ब्रह्मचर्य है । ब्रह्मचर्य के द्वारा ही मन में पवित्रता आती है । मन जितना ही पवित्र होगा, स्वच्छ और साफ होगा, उतना ही सोचने का ढंग भी साफ होगा और कर्त्तव्य को अदा करने की प्रेरणा भी उतनी ही बलवती होगी । वह जीवन संसार में भी महान् होगा और आध्यात्मिक क्षेत्र में भी महान् बनेगा । यदि ऐसा न हुआ, और मन में दुर्विचार भरे रहे तो वह कुत्ते की भाँति भटक कर समाप्त हो जायगा।
इसलिए एक आचार्य ने कहा है- मनुष्य का अर्थ है-'मन ।' 'मानसं विद्धि मानुषम।' मनुष्य क्या है ? जैसा मन, वैसा मनुष्य ! अच्छा मन अच्छी मनुष्यता का निर्माण करता है, और बुरा मन बुरी मनुष्यता का ! ब्रह्मचर्य निर्मल मन की धारा है, और अब्रह्मचर्य मलिन मन की धारा।
मानव-मन का सबसे बड़ा दोष है, अब्रह्मचर्य ! और वह है अनैतिक विकार और वासना । कोई साधु है या गृहस्थ है, यदि वह अच्छा खाना खाता है, और खाने में उसकी रुचि है, तो यह भी दोष तो है, पर यह दोष निभ सकता है । इस समस्या को हल किया जा सकता है । अच्छा वस्त्र पहनने की बुद्धि होती है, तो इसका भी निभाव हो सकता है । और भी जीवन की छोटी-मोटी बातें निभ सकती हैं। किन्तु अब्रह्मचर्यसम्बन्धी दोष इतना बड़ा दोष है कि उसके लिए क्षमा नहीं किया जा सकता।
एक वैदिक ऋषि ने शुभ संकल्पों के लिए प्रार्थना की है
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