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प्रवचन
ज्योतिर्मय जीवन
___ मनुष्य को जो जीवन मिला है, यह जो इतना सुन्दर शरीर मिला है, उसका उद्देश्य क्या है ? यदि उसका उद्देश्य केवल भोगों में लिप्त रहना है, और संसार की वासनाओं में रचपच कर जीवन को नष्ट कर देना है, तो फिर मनुष्य जीवन की पशुजीवन से विशेषता क्या है ? फिर मानव-जीवन की महत्ता और महिमा के गीत क्यों गाए गए हैं ? सांसारिक वासनाओं की पूर्ति तो पशु-पक्षी भी किया करते हैं । और तो क्या, कीट-पतंग तक भी वासना-पूर्ति में लगे हैं।
__ मनुष्य का अनमोल जीवन इस वासना को प्रति के लिए नहीं है । यदि कोई मनुष्य, वासना-पूर्ति में ही अपने जीवन को व्यय करता है, तो उसके लिए हमारे आचार्यों ने कहा है, कि वह मूढ़ है। किसी व्यक्ति को चिन्ता-मणि रत्न मिल गया। वह उसके द्वारा अपनी सब इच्छाएं पूरी कर सकता है, परन्तु ऐसा न करके अगर वह उससे कई दिनों की सड़ी-गली गाजर-मूली खरीदता है, और इस प्रकार चिन्तामणि रत्ल को गाजर-मूली के बदले में दे देता है, तो क्या उसे मूढ़ नहीं कहा जाएगा? क्या उसने चिन्ता-मणिरत्न की वास्तविक प्रतिष्ठा की है ? गाजर-मूली खरीदना चिन्तामणि रत्न का काम नहीं है। उसका उपयोग है, मन के संकल्पों को पूरा करना, अपने उद्देश्य को पूरा करना ।
मानव-जीवन भी चिन्तामणि रत्न के समान है। मानव-जीवन के द्वारा लौकिक और लोकोत्तर सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं । हम जितना ऊँचा उठना चाहें, उठ सकते हैं । इस जीवन के द्वारा हम सभी लौकिक सुख और समृद्धियां प्राप्त कर सकते हैं, और आध्यात्मिक जीवन की समस्त ऊँचाइयां भी प्राप्त कर सकते हैं । इस जीवन को हम ऐसा शानदार जीवन बना सकते हैं, कि हमें यहां भी आनन्द और जन्मान्तर में भी आनन्द । ऐसे महान् जीवन को जो विषय-वासना में खर्च कर देते हैं, उनके लिए आचार्य कहते हैं, कि वे उस कोटि के मनुष्य हैं, जो गाजर-मूली के लिए चिन्ता-मणि रत्न को दे डालते हैं । जिस प्रकार चिन्ता-मणि देकर गाजर-मूली
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