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________________ जीवन-रस तो शरीर सूखे काठ के रूप में परिवर्तित हो जाएगा, और फिर सूखा काठ तो जलने के ही लिए होता है। उसे किसी प्रकार बचाया नहीं जा सकता। ब्रह्मचर्य, शरीर में खाद के रूप में है। जिस खेत में खेती करनी होती है. किसान उसमें खाद देता है और जितना अच्छा खाद देता है, उतनी ही सुन्दर एवं हरी-भरी खेती होती है। पर्याप्त खाद देने पर खेती का विशाल साम्राज्य खड़ा हो जाता है । अगर ठीक समय पर खाद न दिया गया, तो कितनी ही खेती क्यों न बो लो, वह लहलहाती हुई नज़र नहीं आएगी। यह तथ्य हमारे सामने सदा रहना चाहिए। मुझे एक बार एक विचारक मिले । वे रूस की यात्रा करके आए थे। उन्होंने बतलाया, कि भारत में एक एकड़ भूमि में, पांच मन भी अनाज अच्छी तरह पैदा नहीं होता, जब कि रूस में, एक एकड़ में, ५०-६०-१०० मन तक अनाज पैदा हो रहा है। ऐसी स्थिति में, भारत की बढ़ती हुई जन-संख्या को देख कर यह सोचना पड़ता है, कि इतने प्राणियों के लिए अनाज कहाँ से आएगा ? इस दृष्टि से हमारे नेताओं के समक्ष एक विकट समस्या उपस्थित हो गई है। अगर समय रहते समुचित व्यवस्था न की गई, तो क्या परिस्थिति उपस्थित हो जायगी? कुछ कहा नहीं जा सकता? आस-पास की सीमाओं पर तो लोगों ने विचारों के गज उठा लिए हैं और वे अपने कर्तव्य को नाप रहे हैं। मगर भारत के सामने प्रश्न ज्यों-का-त्यों खड़ा है। जन-संख्या तेजी से बढ़ रही है, खाने-पीने का प्रश्न विकट होता जा रहा है, इस पर समाधान की दिशा में, इधर-उधर जनता में बड़ी अजीब-अजीब बातें हो रही हैं। कुछ लोग समस्या का हल पेश करते हैं कि सन्तति-नियमन होना चाहिए । जहां तक सन्तति-नियमन का सवाल है, कोई भी विचारक उससे असहमत नहीं हो सकता। पर, जब लोग कृत्रिम वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग से नियंत्रण की बात कहते हैं, तब हम सोचते हैं, कि यह क्या चीज है ? क्या मनुष्य विकारों और वासनाओं का इतना दास हो गया है, कि ऊपर उठ नहीं सकता? हमारे पास ब्रह्मचर्य का सुन्दर साधन मौजूद है और वह दूसरे उपायों से सुन्दर है, तो फिर क्यों नहीं, उसका उपयोग किया जाता है ? उस से सन्तति का प्रश्न भी हल होता है और सन्तति के जनक और जननी का भी प्रश्न हल हो जाता है। वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग करने का अर्थ यह है, कि मनुष्य अपनी वासना से खुल कर खेले और अपने जीवन को भोग की आग में होम दे। उस हालत में सन्तति नियंत्रण का अर्थ होता है, अपने आप पर अनियंत्रण । अभिप्राय यह है, कि यदि रूप में और ठीक समय पर इस शरीर को ब्रह्मचर्य का खाद मिलता है, और ब्रह्मचर्य : For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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