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ब्रह्मचर्य-दर्शन आज हमारे समाज में, इस सम्बन्ध में अनेक ग़लतफहमियां हैं, और यही कारण है, कि हम अपनी साधना को सही रूप नहीं दे पाते हैं। इस से हमारा अपना ही अहित नहीं होता, साधारण जन-समाज में भी तपश्चरण की महत्ता कम हो जाती है।
ब्रह्मचर्य एक ऐसी साधना है, जिससे शरीर भी शक्ति-शाली बनता है और आत्मा भी शक्तिशाली बनती है । वह बाह्य जगत् में हमारे शरीर को ठीक रखता है, और अन्तर्जगत् में हमारे मन कं. और हमारे विचारों को भी पवित्र बनाता है ।।
___मनुष्य को प्रारम्भ से बचपन में शरीर मिलता है, और धीरे-धीरे वह आगे प्रगति करता है । जब तक वासनाएं नहीं पैदा होती हैं, तब तक वह ठीक-ठीक विकास करता जाता है। किन्तु वासनाओं और विकारों के उत्पन्न होने पर उसका विकास रुक जाता है । यही नहीं, बल्कि ह्रास भी होना प्रारम्भ हो जाता है।
__ मनुष्य का शरीर तो इतना मूल्यवान है, कि इससे सोने की खेती हो सकती है, हीरे और जवाहरात की खेती भी हो सकती है, किन्तु दुर्भाग्य से, यौवन-काल आने पर, इसमें एक प्रकार की आग भी सुलगने लग जाती है । अगर मनुष्य उस आग पर काबू पाने के लिए प्रयत्न नहीं करता, अपितु उसे और हवा देने लगता है, संसार की वासना के चक्र में पड़ जाता है, तो उसके शरीर का तेज़स् और ओजस् झुलस-मुलस कर नष्ट हो जाता है। उसे अकाल में ही बुढ़ापा घेर लेता है। हजारों बीमारियां उस शरीर में अड्डा जमा लेती हैं। फिर वह शरीर न भोग के योग्य रह जाता है, न योग की साधना के योग्य ही रह जाता है। जिसने कच्ची उम्र में भोग के द्वारा, शरीर को नष्ट कर दिया है, वह आगे न भोग के योग्य रह जाता है और न त्याग के योग्य ही रह पाता है । जिस भोग के लिए उसने शरीर को गला दिया है, उस भोग की पूर्ति भी उससे नहीं होती । जीवन की यह एक विडम्बना है।
___ संसार के क्षेत्र में जब आप जीवन को लेकर आगे बढ़ें, उस समय अगर संसार की हवाएं लगने दोगे, और वासना की चिनगारियां सुलगा लोगे, तो जीवन भुलस जाएगा और आगे बढ़ने के मंसूबे जल कर खाक बन जाएंगे। अतएव मनुष्य का यह पवित्र कर्तव्य है, कि वह एक-एक कदम फूक-फूंक कर रखे, और इस बात को समझे, कि यदि एक बार भी ग़लत क़दम पड़ गया, तो फिर जीवन में उसे संभालना और बचा लेना मुश्किल हो जाएगा। जो ऊपर के अभिभावक हैं, परिवार वाले हैं, माता-पिता या गुरु-जन हैं, और जिनके संरक्षण में वह रहता है, वे भी ध्यान रखें, कि बालक के अन्दर बुरे संस्कार तो नहीं पड़ रहे हैं। बुरे विचारों के अंकुर तो नहीं जम रहे हैं, और ऐसा तो नहीं है, कि बालक विकारों के ताप की ओर जा रहा है । अगर जाएगा,
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